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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कि हम अपनेको तैयार करें। बंगाल इस दूसरे दौर में भी अपना कदम आगे ही रखेगा, जैसे कि आज रख रहा है। बारडोली तहसीलके साथ मेहरबानी करके बंगालका भी नाम जोड़ दीजिए। और यदि कभी समझौतेका अवसर आये तो आप हम लोगोंको रिहाईको इतनी अहमियत न दीजिएगा, जितनी कि बदकिस्मतीसे आज दी जा रही है। समझौते की शर्तें तय करते समय सिर्फ हमारी राष्ट्रीय उच्चाकांक्षाओंपर ही दृष्टि रखिएगा हमारी रिहाई के सवालको उससे अलग रखिएगा।"

तार मुझे अभीतक नहीं मिला है, हालांकि पत्र द्वारा मुझे सूचना मिली है कि तार अहमदाबाद और बारडोली दोनों ही पतोंपर भेजा गया था । मैं जनताके सामने यह तार इसीलिए पेश कर पा रहा हूँ कि बंगाल की प्रान्तीय खिलाफत समितिने बेगम साहिबा के कहने पर मुझे इसकी नकल डाकसे भेजने की कृपा की है । यह कोई कम तसल्लीकी बात नहीं कि बड़े-बड़े घरानोंकी महिलाएँ एकके बाद एक उन खाली स्थानोंकी पूर्ति के लिए आगे बढ़ रही हैं जो राष्ट्रीय पुरुष कार्यकर्त्ताओंके जेल जानेसे खाली हो गये हैं। मैं बेगम मौलाना अबुल कलाम आजादको इस बातके लिए तहेदिल- से मुबारकबाद देता हूँ कि उन्होंने कौम और मुल्ककी खिदमत के लिए अपने-आपको सौंप दिया है। मौलाना साहबके सन्देशको पाठक अपने हृदयपर अंकित कर लें । यह बात बिलकुल सच है कि न तो सरकार और न देश ही आज किसी समझौते के लिए तैयार है। सरकार तबतक तैयार न होगी जबतक हम अधिक दिनोंतक और भी अधिक कष्ट सहन न कर लेंगे। बंगालने अवश्य ही इस मामले में सबसे पहले कदम बढ़ाया है। बारडोलीने तो अभी बहुत ही थोड़ा काम किया है । निर्दय प्रकृतिने दो बार उसको इस सौभाग्यसे वंचित कर दिया है। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बंगाल आगे बढ़ता है या बारडोली । असल बात यह है कि कोई भी आगे बढ़कर हमें उस प्रणालीसे छुटकारा दिलाये, जिसके बारेमें हमें दिन-प्रतिदिन इस बातकी अधिकाधिक प्रतीति होती जा रही है कि वह आतंकपर आधारित है । मौलाना साहबको डर है कि कहीं ऐसा न हो कि असहयोगी कैदियोंकी रिहाईके क्षणिक सुखके आगे देश-हितका त्याग कर दिया जाये। लेकिन देशकी जो मनोदशा इस समय है, उसमें तो ऐसी कोई आशंका नहीं दिखाई देती ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२२