पिताजी, बरसाकर मुझपर अपनी ममता और प्रीत,
- मेरी पट्टीपर लिखाओ मोठे गोविन्दजीके गीत।
- मुझे प्यारा, प्यारा, प्यारा दादा रामजीका नाम।
- मुझे प्यारा, प्यारा, प्यारा दादा रामजीका नाम।
- मुझे सुनना है रामजी, श्री रामजीका गान;
- मुझे करना है श्री रामजीका स्मरण और ध्यान
- मुझे प्यारा, प्यारा, प्यारा दादा रामजीका नाम।
कालिदास वसावड़ा
पाठ पाँचवाँ
कसरत
'भजन करनेके बाद तुमने आज कौन-सी कसरत की?'
'आज तो मैंने डण्ड पेले थे, और हम सब एक साथ दौड़े भी थे।'
'दौड़ते समय तुम मुँह बन्द रखते हो न? हमें साँस हमेशा नाकसे ही लेनी चाहिए।'
'क्या कोई दूसरी कसरत भी करते हो?'
'हाँ कभी बैठक लगाते हैं; कभी कुश्ती लड़ते हैं। हम अपनी कसरतको भी खेल समझते हैं। दूसरे खेलोंमें हम 'आटापाटा' खेलते हैं, लुका-छिपी, कबड्डी, खो-खो, गिल्ली-डण्डा आदि जो भाता है, हम हमेशा खेलते हैं।'
'जैसे सवेरे भजनके बाद कसरत करते हैं, उसी तरह शामको भी कुछ-न-कुछ तो होता ही है।'
पाठ छठा
चरखा
'माधव, तुमने आज कितना काता?'
'माँ, आज तो मैंने केवल छः लच्छियाँ काती हैं।'
'भला इतनी ही क्यों? हमेशा तो तुम कमसे कम आठ लच्छियाँ कातते हो।'
'हाँ, माँ, आज मुझे थोड़ा आलस आ गया, और पूनियाँ भी कुछ खराब रही होंगी, जिससे सूत टूटता था।'
'तुम चरखेपर कितने घंटे बैठे थे?'
'तीन घंटे बैठा था। तुम मुझसे कहोगी कि यह तो कम हुआ। बात भी सच है। मैंने तुमसे कहा है कि आज जी अलसा गया था। बन सका तो कल ही यह एक घंटा पूरा कर दूँगा। मुझे रोज कमसे कम चार घंटे तो कातना ही है।'
'बेटा, तुम देखोगे कि यह एक घंटा बीते हुए घंटे के जितना काम कभी नहीं देगा। बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता।'
'आलस तो हमारा बैरी है।'