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१८. भेंट: हिन्दू-मुस्लिम एकतापर

[१]

दिल्ली
२२ अगस्त, १९२४

गांधीजी आज सुबह अहमदाबादसे बम्बई जानेके लिए रवाना हुए। भेंटकर्त्ताके पूछनेपर उन्होंने बताया कि समझौतेके लिए हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच अब भी बातचीत चल रही है और स्थिति पहलेकी तरह ही आशाजनक है।[२]अभी तो मैं इतना ही कह सकता हूँ।

यह पूछनेपर कि आप दिल्ली कब लौट रहे हैं, श्री गांधीने कहा कि अगर मुहम्मद अली चाहेंगे कि मैं आऊँ तो अवश्य आऊँगा।

फिर जब उनसे यह पूछा गया कि क्या आप कोई ज्यादा आशाजनक बात नहीं कह सकते, तो श्री गांधीने उसका उत्तर प्रश्नके ही रूपमें दिया। उन्होंने कहा, "क्या यह काफी आशाजनक नहीं है?"

विदा होनेसे पहले उन्होंने मुहम्मद अलीसे खूब काम करनेको कहा। चूँकि वे दिल्लीकी स्थितिको सिर्फ स्थानीय स्थिति ही नहीं मानते और चूँकि कहा जाता है कि वे जैसे-तैसे जोड़-तोड़कर किये गये समझौतेके खिलाफ हैं, इसलिए कहते हैं, इस बातचीतमें ज्यादा समय लगा है और अभी और भी लग सकता है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २२-८-१९२४

१९. पत्र: जमनालाल बजाजको

श्रावण बदी ९ [२३ अगस्त, १९२४]

चि० जमनालाल,

मैं इस वक्त ट्रेनमें हूँ। दिल्लीसे वापस आश्रम जा रहा हूँ। दिल्लीमें समझौतेकी बातें चल रही हैं। मोतीलालजीका पत्र नहीं आया। तुम्हारे प्रान्तमें शुद्ध रीतिसे जो हो वह होने दो। हम तटस्थ रहकर अपना काम करते रहें, इतना ही जरूरी है।

घनश्यामदास दिल्ली में नहीं थे। उनकी ओरसे रुपये मिल गये थे। वे रुपये बिना खर्चके किस तरह तुम्हें भेजे जायें, यह लिखकर पूछने के लिए छगनलालको कहा था। साथमें महादेव, देवदास और प्यारेलाल हैं।

बापूके आशीर्वाद गुजराती पत्र (जी० एन० २८४९) की फोटो-नकलसे।

  1. १. यह भेंट एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिको दी गई थी।
  2. २. गांधीजी स्वयं झगड़े के स्थानपर गये थे।