स्थिति मजबूत नहीं है। मुझे अभीतक कोहाटके उन मुसलमानोंसे परिचय करनेका भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है जो मुसलमान-जनताके सलाहकार हैं। इसलिए इस बातका तो वे अच्छी तरह निर्णय कर सकेंगे कि मुसलमानोंके लिए और हिन्दुस्तानके लिए क्या हितकर होगा।
यदि दोनों पक्ष सरकारका बीच-बचाव चाहते हैं तो मेरी सेवाएँ व्यर्थ है; क्योंकि मुझे ऐसे बीच-बचावकी आवश्यकतामें विश्वास ही नहीं है, और सरकारके साथ समझौतेके लिए जो बातचीत की जायेगी उसमें मैं कोई भी भाग न ले सकूँगा। यह सच है कि मुसलमानोंसे अच्छा व्यवहार पाने और माँगनेका हिन्दुओंको हक है। लेकिन दोनों कौमोंको सरकारसे बचकर रहना चाहिए क्योंकि उसकी तो नीति ही यही है कि एकको दूसरेसे भिड़ा दे। सीमाप्रान्तकी हुकूमत खुदमुख्तार है। अधिकारीकी इच्छा ही वहाँ कानून है। इस स्थितिमें दोनों कौमोंको मिलकर प्रतिनिधि सरकार बनानेका प्रयत्न करना चाहिए और उसमें अपना गौरव मानना चाहिए। लेकिन जबतक दोनों कौमें एक-दूसरेपर विश्वास नहीं करतीं और प्रतिनिधि सरकार बनानेकी इच्छा दोनोंकी महत्वाकांक्षा नहीं बन जाती तबतक यह सम्भव नहीं है।
१९०. भाषण: पोदनूरमें
१९ मार्च, १९२५
महात्माजीने उत्तर देते हुए कहा कि मुझे यह सुनकर प्रसन्नता हुई है कि यहाँ सभी जातियोंके लोग परस्पर शान्ति और सद्भावसे रहते हैं और यहाँ अस्पृश्यता या हिन्दुओं और मुसलमानोंका कोई झगड़ा नहीं है। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप देशके लिए प्रतिदिन आधा घंटा चरखा कातें और खद्दर पहनें। यदि मौलाना शौकत अली मेरे साथ होते तो वे यह सुनकर खुश होते कि मजदूरोंमें कोई साम्प्रदायिक द्वेष नहीं है। अन्तमें मैं आप लोगोंको यही सलाह देता हूँ कि आप शराबको लत छोड़ दें।
१. यह भाषण पोदनूरके रेलवे मजदूरों द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिया गया था।