२०७. पत्र: कृष्णदासको
२३ मार्च, १९२५
तुमको यह पत्र यों ही सिर्फ इतना बतलानेके लिए लिख रहा हूँ कि मुझे तुम्हारा और गुरुजीका ध्यान सदा बना रहता है। समझौतेके बारेमें उनके दिमागमें जो सन्देह पहले थे, क्या वे अब भी बने हैं। आशा है वे स्वस्थ होंगे।
लगता है, तुम्हारा स्वास्थ्य पहलेसे अच्छा चल रहा है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि तुम जब भी मेरे साथ यात्रामें चलना चाहो, बेधड़क चल सकते हो। मैं आनेके लिए लिखूँगा, इसकी आशा न करना; इसलिए कि तुम्हारी सेवा मेरे लिए सबसे अधिक उपयोगी वहीं हो सकेगी, जहाँ तुम सबसे अधिक खुश रहो और तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक रहे। मेरी अपनी कोई भी पसन्दगी या नापसन्दगी न है और न होनी चाहिए। हम सभी एक ही लड़ाई में लड़नेवाले सैनिक हैं। मैं ऐसा सेनापति हूँ जो चाहता है कि उसके बढ़ियासे-बढ़िया सैनिक स्वयं ही यह बतायें कि सबसे अधिक उपयोगी सेवा वे कहाँ कर सकते हैं। मैं जब महसूस करूँगा कि अमुक सैनिकको अमुक कामपर लगाना ठीक होगा, तब मैं उसमें एक क्षण भी न हिचकूँगा।
इसके साथ एक कतरन वापस भेजता हूँ। यह तुमने मुझे महीनों पहले दी थी और तबसे मेरे पास थी। मैं वहाँ २७ तारीखको पहुँच रहा हूँ।
बापूके आशीर्वाद
अंग्रजी पत्र (जी० एन० ५५९९) को फोटो-नकलसे।
२०८. तार: चित्तरंजन दासको
मद्रास
२४ मार्च, १९२५
रैनर रोड
कलकत्ता
विजयपर बधाई। आशा है आप पूर्ण स्वस्थ हो गये होंगे। आज अहमदाबाद जा रहा हूँ।
गांधी
अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।