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भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें

करोड़ लोग भारतके २० करोड़ लोगोंपर अपनी भाषा या अंग्रेजी भाषा लादना चाहते हैं।

मैंने अपने भाषणके प्रारम्भमें बताया है कि आज सुबह १४८, रसा रोडमें प्रवेश करते समय मुझे कितना दुःख हुआ। मैं जानता हूँ कि वह भवन अब देशबन्धु दासका नहीं रहा। मैं जानता था कि वे उस सुन्दर प्रासादको न्यासियोंको सौंपनेका विचार कर रहे हैं ताकि वे अपनी धन-सम्पदाके इस एक रहे-सहे चिह्नसे भी अपने- को मुक्त कर सकें। धन-सम्पदाके नामपर केवल यही उनके पास बचा था। लेकिन अभीतक दुनियामें रमे हुए मेरे जैसे दुनियादार आदमीने जब यह जानते हुए उस भवनमें कदम रखा कि उसके प्रख्यात स्वामीने स्वेच्छया उसके स्वामित्वसे अपने आप- को वंचित कर लिया है तो मेरी आँखें भर आई। मेरा मन यह सोचकर कसक उठा कि यह घर अब दासका नहीं है और जब मैंने यह सुना कि वे अभीतक अपने गिरे स्वास्थ्यको सँभाल नहीं पाये हैं तो मुझे और अधिक पीड़ा हुई । उनका पैसिलसे लिखा संक्षिप्त किन्तु सुन्दर और प्यार-भरा सन्देश पढ़कर तो मेरी पीड़ा कई गुनी बढ़ गई। उस सन्देशमें उन्होंने लिखा था कि दोगुना भार सहन करना उनके सामर्थ्यसे बाहर हो गया था, इसीलिए वे पहले ही फरीदपुर पहुँच गये थे। ईश्वर उन्हें इस देशकी सेवाके लिए, जिसे वे इतना अधिक प्यार करते हैं, स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन प्रदान करे।

आप मुझसे यह आशा नहीं करेंगे कि मैं राजनीतिक स्थितिके बारे में कुछ कहूँ। एक समाचारपत्रके संवाददाताने मुझे बताया कि लॉर्ड बर्कनहेड और देशबन्धु दासके बीच वार्ता चल रही है। मुझे इस प्रकारको किसी भी वार्ताकी कोई जानकारी नहीं है; किन्तु मैं निश्चित रूपसे जानता हूँ कि देशमें आज एक ऐसी स्थिति है जिसे हम राजनीतिक स्थिति कह सकते हैं। किन्तु इस समय उस राजनीतिक स्थितिमें मुझे ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। मैं अपने समयका बिलकुल ठीक-ठीक उपयोग करना चाहता हूँ। मैंने जान-बूझकर स्वराज्यवादी दलको अपनी आम मुख्तारी सौंप दी है। वह कांग्रेसका एक अभिन्न अंग है। कांग्रेसके राजनीतिक कार्यक्रमको चलानेकी जिम्मेदारी उसीपर है और चूंकि मुझे पूरा भरोसा है कि स्वराज्यवादी दल राज- नीतिक स्थितिको सँभालनेकी योग्यता रखता है और चूंकि जहाँतक परिषद् सम्बन्धी कार्यक्रमका प्रश्न है, देशबन्धु और पण्डित मोतीलाल नेहरूकी विवेकबुद्धिपर मुझे पूरा भरोसा है, इसलिए जबतक वे खुद न चाहें तबतक उनके क्षेत्रमें दखल देना मेरी धृष्टता ही होगी। इस समय तो ऐसा कोई भी कारण दिखाई नहीं पड़ता कि वे [कौंसिलोंसे सम्बन्धित किसी बातमें] मेरा हस्तक्षेप चाहें या मेरी राय लें। जब कभी वे चाहेंगे मैं उनकी सेवामें हाजिर ही हूँ। किन्तु अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि जबतक मैं देशबन्धु दाससे बात नहीं कर लेता तबतक मैं राजनीतिक परिस्थितिके बारेमें अपनी कोई निश्चित राय नहीं दे सकता। मैं स्वराज्यवादी दल या देशबन्धु अथवा स्वराज्यवादी दलके किसी एक सदस्यके रास्तेमें अड़चन पैदा करनेके लिए बंगाल नहीं आया हूँ, और न इसके लिए सारे देशका दौरा कर रहा हूँ। मैंने ईश्वर-