पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३९
मेरा धर्म

है कि अब जो भी परिवर्तन स्वीकार किया जाये वह प्रयोग रूपमें न हो, सदस्योंकी इच्छासे स्थायी कर दिया जाये।

तीसरी बात कांग्रेसमें स्वराज्यदलके स्थानके सम्बन्धमें है। इस समय स्वराज्यदलको कांग्रेसके एलची या मुख्तारका स्थान प्राप्त है। दल इसके बजाय कांग्रेसके नेता या मुखियाका स्थान प्राप्त करना चाहता है। मुझे ऐसा लगता है कि इस समय हमारे सामने जो स्थिति उपस्थित उसमें कांग्रेसमें स्वराज्यवादियोंकी सभी गति-विधियोंका बहिष्कार कायम रखना उचित नहीं है। इसके बजाय यह उचित मालूम होता है कि स्वराज्यवादियोंकी खास प्रवृत्ति ही कांग्रेसकी मुख्य प्रवृत्ति बन जाये और सूत कताई और खादी प्रचारका कार्य हमारे इन्हीं प्रतिनिधियोंकी मार्फत हो। कांग्रेसके नामकी नौकाकी जितनी आवश्यकता स्वराज्यवादियोंको है या हो सकती है उतनी चरखेकी प्रवृत्तिके लिए नहीं है। चरखेकी प्रवृत्तिकी सफलता केवल रचनात्मक कार्यपर निर्भर है। इसके विपरीत स्वराज्यवादियोंकी प्रवृत्ति लोकमत तैयार करनेपर निर्भर है। इसलिए मेरा विचार यह है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अपनी अगली बैठकमें स्वराज्यवादियोंको कांग्रेसमें प्रमुख बना दे और सूत कताईकी प्रवृत्तिको चलानेके लिए एक नई संस्था बना दे तथा उसे कांग्रेसका अंग बनाकर इस प्रवृत्तिकी जिम्मेदारी सौंप दे। ऐसा करनेसे खादी-प्रचारमें भी एक प्रकारकी सुविधा होगी और कताई संस्था मतोंपर निर्भर न रहनेसे लोकमतके परिवर्तनके जोखिमसे भी बच जायेगी। सूत कताईके पक्षमें लोकमत बन जानेपर उसका प्रचार केवल धन और व्यवस्थापर अर्थात् व्यापार-कुशलतापर निर्भर रहेगा। इसलिए वह संस्था कांग्रेसकी व्यापार संस्था बन जानी चाहिए। ऐसा लगा था कि जो नेता कलकत्तामें इकट्ठे हुए थे[१] उनका मत ऐसा करनेके पक्षमें भी था।

मुझे अपना कर्त्तव्य तो बिलकुल स्पष्ट दिखाई देता है। मुझे अपनी शक्ति और अपने सिद्धान्तके अनुसार स्वराज्य दलकी सहायता करनी चाहिए, कांग्रेसकी प्रधान प्रवृत्ति राजनीतिमें भाग लेना बन जाये, इसका विरोध नहीं करना चाहिए और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको इस आशयका सुधार करनेका सुझाव देना चाहिए कि लोग मताधिकारके लिए सुत खरीद कर देनेके बजाय पैसा ही दें। मुझे लगता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें जो लोग मेरी भाँति अपरिवर्तनवादी हैं उनका कर्त्तव्य भी यही है। किन्तु कमेटीका इस बैठकमें कोई करार रखनेका विचार नहीं है। प्रत्येक सदस्य अपनी स्वतन्त्रताका उपयोग कर सकेगा। मैंने किसी कार्रवाईसे किसीको बाँधा नहीं है। मैंने स्वराज्यदलको बन्धनसे मुक्त कर दिया है। इसलिए स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादी दोनों अपनी-अपनी इच्छाके अनुसार मत दे सकेंगे और देंगे, मैं भी यही चाहता हूँ।

अब एक प्रश्न विचारणीय बच रहता है। कांग्रेसकी प्रतिनिधि समिति, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, कांग्रेसके बनाये नियममें परिवर्तन कर सकती है या नहीं?

  1. १६ तथा १७ जुलाई, १९२५ को हुई कांग्रेस कार्यसमिति और स्वराज्यदलकी बैठकोंके सम्बन्धमें।