मेरी प्रार्थना है कि आप इस पत्रको परमश्रेष्ठके सम्मुख उपस्थित कर दें। मुझे भरोसा है कि परमश्रेष्ठ इस मामलेमें मेरी समितिको निर्देश देनेकी कृपा करेंगे।[१]
आपका आज्ञाकारी सेवक,
तैयब हाजी खान मुहम्मद
प्रिटोरिया आर्काइव्ज़ : एल-टी० जी० ९२ और एल० जी० २१३२, नं० ९७-१-२ : एशियाटिक्स, १९०२/१९०६
२१२. अभिनन्दनपत्र : चेम्बरलेनको[२]
प्रिटोरिया[३]
जनवरी [७], १९०३
परम माननीय जोज़ेफ़ चेम्बरलेन
सम्राट्के मुख्य उपनिवेश-मंत्री
प्रिटोरिया
हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले प्रार्थी अति कृपालु सम्राट्के भारतीय प्रजाजनोंकी ओरसे, उनके प्रतिनिधि रूपमें आपका ध्यान सादर निम्नलिखित विवरणकी ओर आकृष्ट करते हैं । यह उन कानूनी निर्योग्यताओंके विषयमें है, जिनसे हमारे देशवासी इस उपनिवेशमें पीड़ित हैं ।
भूतपूर्व गणराज्यके कानूनोंके अनुसार ब्रिटिश भारतीय :
(१) पृथक् बस्तियोंके सिवा और कहीं अचल सम्पत्ति नहीं रख सकते;
(२) अपने आगमनके आठ दिनके भीतर एक पृथक् रजिस्टरमें अपना नाम दर्ज कराने और उसके लिए ३ पौंड देनेके लिए बाध्य हैं;
(३) पृथक् बस्तियोंमें ही व्यापार और निवास करनेके लिए बाध्य हैं;
(४) विशेष अनुमतिके बिना रातको ९ बजेके बाद घरसे बाहर नहीं निकल सकते;
(५) रेलगाड़ियोंमें तीसरे दर्जेके सिवा किसी और दर्जेमें यात्रा नहीं कर सकते;
(६) जोहानिसबर्ग और प्रिटोरियामें पैदल पटरियोंपर नहीं चल सकते;
(७) जोहानिसबर्ग और प्रिटोरियामें किराये की गाड़ियोंमें यात्रा नहीं कर सकते;
(८) देशी सोना नहीं रख सकते और न खनकोंके परवाने पा सकते हैं ।
- ↑ अपने जनवरी ७ के उत्तरमें लेफ्टिनेंट गवर्नरने खेदपूर्वक लिखा कि वे गांधीजीको शिष्टमंडल में शामिल करनेकी आज्ञा नहीं दे सकते, और न उन्हें एशियाई पर्यवेक्षककी उपस्थितिपर आपत्तिफा कोई कारण ही दिखाई देता है (एस० एन० ४०२७) । गांधीजीने अपनी आत्मकथा (गुजराती, १९५२, पृ४२५४-५५ ) में इस घटना का वर्णन किया है ।
- ↑ गांधीजीने अपनी आत्मकथा (गुजराती, १९५२, पृष्ठ २५३) में उल्लेख किया है कि इसका मसविदा उन्होंने ही बनाया था ।
- ↑ अभिनन्दनपत्र जनवरी ७ को भेंट किया गया था ।