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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

गिरमिटिया मजदूरोंको, जो उपनिवेशसे अच्छे व्यवहारके हकदार हैं, मामूली नागरिक अधिकारोंसे वंचित रखनेके इरादेका आपके प्रार्थी विरोध करते हैं । उपनिवेशके विकास और वैभवके लिए गिरमिटिया भारतीय दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक अनिवार्य होते जा रहे हैं और प्राथियोंका निवेदन है कि इस सेवाके कारण उनके बारेमें माननीय सदनको विशेष अनुकूल विचार करना चाहिए ।

विचाराधीन विधेयकके बारेमें हमारा एक नम्र सुझाव है।

हमारा निवेदन यह है कि, चूंकि अब सारा दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश सत्ताके अधीन आ गया है, इसलिए दक्षिण आफ्रिकामें कहीं भी बसनेवाले हर आदमीके लिए इस उपनिवेशके दरवाजे खोल दिये जायें। केवल वे लोग अपवाद हों जिनका उल्लेख खण्ड ५ के उपखण्ड ग, घ, ङ, च और छ में किया गया है। इस प्रसंगपर हम माननीय सदस्योंको याद दिला देना चाहते हैं कि केप कालोनीमें यह सिद्धान्त मंजूर किया जा चुका है।

अन्तमें हम आशा करते हैं कि माननीय सदस्य इस प्रार्थनापर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और इसमें जिस राहतकी माँग की गई है वह मंजूर करेंगे । और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, अपना कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेंगे, आदि ।

अब्दुल कादिर,
मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन पेढ़ीवाले
और अन्य

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-६-१९०३

२६०. चित्रका उजला पहलू

अबतक हम दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके कष्टोंका वर्णन करते रहे। परन्तु कोई यह न समझे कि हम वही राग अलापते रहना चाहते हैं, मानो इस चित्रका कोई उजला पहलू है ही नहीं। इसलिए हम अपने पाठकोंको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि ब्रिटिश भारतीयोंको यद्यपि सारे दक्षिण आफ्रिकामें बड़ी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है, फिर भी ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनके लिए हमको कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। इन स्तम्भोंमें कर्त्तव्यवश हमने जिन दुःखजनक बातोंका उल्लेख किया है, अगर उनका उजला पहलू न होता तो इस उप-महाखण्डमें भारतीयोंका जीवन एकदम असह्य हो जाता ।

ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान अवस्था अन्ततः अनिवार्य है और इसमें गोरे निवासियोंका बहुत अधिक दोष नहीं है; क्योंकि बहुतसे कार्य मनुष्य परिस्थिति-वश करता है ।

यहाँपर हम एक पक्के उद्योगशील और स्वार्थ-साधक समाजके बीच रह रहे हैं (यहाँ 'स्वार्थ-साधक' शब्दका प्रयोग बुरे अर्थमें नहीं किया गया है) । ऐसे आदमियोंके लिए यहाँ कोई स्थान नहीं हो सकता, जो उद्यमी और पुरुषार्थी नहीं हैं, या जो इस बातके विषयमें पूरी तरह जागरूक नहीं हैं कि कहीं उनके अधिकारोंका अपहरण तो नहीं हो रहा है । उपनिवेश बसते ही इन कारणोंसे हैं। कोई परोपकार की भावनाको लेकर दूसरे देशमें बसनेके लिए नहीं जाता। वहां लोग इसलिए जाते हैं कि उनकी माली हालत अच्छी हो। वे पहलेसे