आशा है, तुम शान्त होगे। भगवान करे तुम्हारा स्वास्थ्य बिलकुल ठीक हो जाये। मैं तुम्हारी घर-गृहस्थीमें तनिक भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। इतना भी जो लिखा है सो मित्र-भावसे ही। करना वही जो तुम्हें ठीक लगे।
मोतीको यह पत्र पढ़ाना चाहो तो पढ़ा देना। यह लड़की मेरा प्रेम कैसे समझ सकती है?
गुजराती प्रति (एस० एन० १२११९) की फोटो-नकलसे।
१३३. पत्र : पी० जी० मलकानीको
साबरमती आश्रम
१६ मार्च, १९२६
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला। मैंने पूरी तरह पूछताछ की, लेकिन आपने जिस हुंडीका जिक्र किया है, उसका कोई पता नहीं चला। जाहिर है कि वह गलतीसे कहीं और चली गई है। लेकिन, खुशीकी बात है कि किसी ने उसे अबतक भुनाया नहीं है। अगर अब भी आपकी इच्छा वह रकम भेजनेकी हो तो कृपया ऊपरके पतेपर भेज दें।
हृदयसे आपका,
हैदराबाद शहर मंघा स्थान, कराची
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३६२) की माइक्रोफिल्मसे।
१३४. कैथरीन मेयोके साथ हुई बातचीतका विवरण[१]
१७ मार्च, १९२६
अमेरिकाको मेरा सन्देश केवल यही चरखेकी गुनगुन ध्वनि है। अमेरिकासे जो पत्र और अखबारी कतरनें मुझे मिलती हैं, उनसे पता चलता है कि वहाँ एक वर्ग ऐसा है जो अहिंसात्मक असहयोगके परिणामोंको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर आँकता है, और दूसरा वर्ग है जो बहुत कम करके तो आँकता ही है, साथ ही इस आन्दोलन से
- ↑ कैथरीन मेयोके २४-३-१९२६ के पत्रका एक अंश इस प्रकार है: "आपके सचिवकी मार्फत मिले सन्देशके अनुसार मैं १७ तारीखको दिये गये आपके सन्देशका वह विवरण भेज रही हूँ जो मैंने लिख लिया था। जिन स्थलोंपर सही शब्दोंके बारेमें सन्देह है, वे स्थान मैंने रिक्त छोड़ दिये हैं। अपने कथनोंके स्पष्टीकरण था सुधारोंके बाद आप इसे वापस भेजेंगे तो मैं अनुग्रह मानूँगी।..." (एस० एन० १२४४९ की फोटो-नकल); "पत्र: कैथरीन मेयोको", ९-४-१९२६ भी देखिए।