३१७. पत्र: जे॰ चटर्जीको
साबरमती आश्रम
१० अप्रैल, १९२६
आपका पत्र मिला। तदर्थ धन्यवाद। आपका पत्र और कतरन मैंने डॉ॰ रायके विशेषज्ञ सतीशबाबूको, जो सहायता डिपोकी देखरेख कर रहे हैं; भेज दी है। मैं खुद इस डिपोके बारेमें जानता हूँ और मैं आपको यह बता दूँ कि आलोचनाका उत्तर देनेमें कोई कठिनाई नहीं है। स्वयं 'वेलफेयर' में दिये गये आँकड़ोंके आधारपर उसका उत्तर भली-भाँति दिया जा सकता है। लेकिन मैं इस बातसे सहमत हूँ कि जो लोग इस डिपोको चला रहे हैं उनकी ओरसे अधिकृत तौरपर दिया गया उत्तर अधिक सन्तोषजनक होगा।
हृदयसे आपका,
१, जॉन्स्टनगंज
इलाहाबाद
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४४२) की माइक्रोफिल्मसे।
३१८. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको
साबरमती आश्रम
१० अप्रैल, १९२६
निरंजन बाबूके बारेमें लिखा आपका पत्र मिला। आपके ऊपर कोई लांछन लगानेके खयालसे मेरा पत्र[१]नहीं लिखा गया था। यह शुद्ध रूपसे पिछले महीनेके आँकड़ोंपर आधारित था जो मेरे सामने रखे गये थे। यदि शंकरलालसे बातचीत करनेके लिए तथा उन कागजातोंको देखनेके लिए मेरे पास वक्त होता, जिन्हें आपने मेरे पास भेजा है और जिनमें, जैसा कि आप कहते हैं, वह सभी जानकारी है तो मैं उसे अवश्य जान जाता। पर इस समय मैं स्वयंको जिस कठिन परिस्थितिमें पा रहा हूँ, आप उसे जानते हैं। रोजमर्राके नियमित कामोंके अलावा अन्य किसी कामके लिए मेरे पास वक्त ही नहीं रहता। इसलिए मैंने जल्दीमें बोलकर निरंजन बाबूसे
- ↑ देखिए "पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको", २९-३-१९२६।