५४३. पत्र: शंकरलालको
महाबलेश्वर
१७ मई, १९२६
आपका पत्र मिल गया था। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि श्रीयुत गिडवानी[१] प्रेम महाविद्यालयके आचार्य नियुक्त किये गये हैं। आपने उन्हें जो पत्र लिखा है उसकी नकल उन्होंने मुझे दी है। मैं आपके लिखे नियमोंको[२] सहर्ष पढ़ जाऊँगा और जरूरी समझूँगा, वैसे सुझाव भी दूँगा।
डॉ॰ रायको यह जाननेके बाद लिखूँगा कि वास्तवमें जरूरत किस चीजकी है। यह शायद ज्यादा ठीक होगा कि डॉ॰ रायको तबतक न लिखा जाये जबतक कि आचार्य गिडवानी वहाँ पहुँचकर सोच-विचार करके यह नहीं तय कर लेते कि क्या करना चाहिए।
हृदयसे आपका,
दिल्ली
[संलग्न]
१. चरखेमें उतने तकुए लगाये जा सकते हैं जितने तकुओंको कोई एक व्यक्ति पैरकी मदद से वा उसकी मददसे बिना चला सकता है।
२. उससे हाथसे पिंजी हुई रुकी पूनियोंसे प्रति घंटा कमसे-कम ३००० गज एक-सार, अच्छा बँटा हुआ कमसे-कम १० नम्बरका सूत काता जा सकना चाहिए।
३. उसका मूल्य ४ पौंड, अर्थात् ६० रुपयेसे अधिकका नहीं होना चाहिए।
४. इसे ऐसा होना चाहिए जिससे इसको आसानीसे कहीं ले जाया जा सके।
५. टूटे हुए हिस्सोंकी मरम्मत आसानीसे हो सकनी चाहिए या मरम्मत न हो सके तो वे कमसे-कम आसानीसे उपलब्ध हो सकने चाहिए।
६. किसी भी सावधान व्यक्तिके हाथमें इसे बिना किसी मरम्मतके प्रति दिन ८ घंटेके हिसाबसे पूरे एक सालतक काम दे सकना चाहिए।
७. इसे चलानेवालेको अपने हाथों और पैरोंसे वह सब काम करना चाहिए जो कि किसी भी स्त्री या पुरुषसे एक हप्तेके भीतर सीख केनेकी आशा की जा सकती है।
८. इस चरखेको चलानेमें उससे ज्यादा शक्ति अपेक्षित नहीं होनी चाहिए, जितनी कि एक सिलाई मशीनको चलानेके लिए दरकार होती हो।
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५५६) की माइक्रोफिल्मसे।