६५४. पत्र: रुथ एस॰ एलेक्जैंडरको
साबरमती आश्रम
८ जून, १९२६
श्री एन्ड्रयूजने आपका अनमोल पत्र मुझे दिया है। उससे पुरानी और पवित्र स्मृतियाँ ताजी हो जाती हैं। कैलेनबैक[१] यद्यपि हमेशा आनेको लिखते रहते हैं, लेकिन अभीतक आये नहीं हैं। हाँ, यह विश्वास जरूर है कि किसी दिन सबेरे-सबेरे उनका इस आशयका तार मिलेगा कि वे रवाना हो चुके हैं।
क्या आप कभी 'यंग इंडिया' पढ़ती हैं? मैं उसे मित्रोंके नाम लिखा अपना साप्ताहिक पत्र मानता हूँ। कृपया श्री एलेक्जेंडरसे मेरा यथायोग्य कहिएगा। श्री एन्ड्रयूजने मुझे बताया है कि उनके काममें एलेक्जेन्डरने कितनी ज्यादा मदद की थी।
हृदयसे आपका,
हेलब्रॉन
लेटन रोड
सेंट जेम्स, सी॰ पी॰
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०७६६) की फोटो-नकलसे।
६५५. पत्र: प्यारेलाल नैय्यरको
साबरमती आश्रम
८ जून, १९२६
इधर कुछ दिनोंसे तुम्हारा कोई पत्र नहीं आया। मैं रजिस्टर्ड डाक द्वारा कताई पर लिखे निबन्धकी एक प्रतिलिपि और जो टिप्पणियाँ तुम यहाँ छोड़ गये थे, भेज रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम जितनी जल्दी हो सके निबन्धको पढ़ जाओ और उसमें संशोधन कर डालो।
अब अन्तिम रूपसे यह तय हो गया है कि मैं फिनलैंड नहीं जा रहा हूँ। आशा है कि तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा चल रहा होगा और उसमें दिन-दिन सुधार हो रहा
- ↑ एक जर्मन वास्तुशिल्पी, दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके सहयोगी और घनिष्ठ मित्र।