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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विचार किया था; लेकिन खुलासेके लिए उसके बजाय यह पत्र लिखा है। मुझे उत्तर तो तारसे ही दें। यदि यह बात सच हो तो आप अंगूर भेजना बन्द कर दें।

बापू के आशीर्वाद

भाईश्री नारणदास आनन्दजी
कराची

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९२३) की माइक्रोफिल्म से।

८४. पत्र : मोतीलालको

आश्रम
२९ जून, १९२६

भाईश्री ५ मोतीलाल

आपका पत्र मिला। सद्गुरुकी शोध करनेवालेको निर्दोष और निर्विकार होना चाहिए, ऐसी मेरी मान्यता है। निर्दोष और निर्विकारका अर्थ पूर्ण पुरुष नहीं है। गुरुकी आवश्यकता माननेमें नम्रता निहित है। गुरु देहधारी ही हो, ऐसा नियम नहीं है। जो पूर्ण तो नहीं है लेकिन जो ऊँची कोटिमें पहुँच गये हैं, ऐसे अनेक लोगोंको आज भी मैं अपना मार्गदर्शक समझता और मानता हूँ। पूर्ण पुरुष और ईश्वर क्या अन्तर है, यह प्रश्न पूछने योग्य नहीं है क्योंकि इसका जो भी उत्तर दिया जायेगा वह अपूर्ण ही होगा। अतः यह आवश्यक है कि इस प्रश्नका उत्तर प्रत्येक मनुष्य अपने अनुभवसे प्राप्त करे।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

श्रीयुत मोतीलाल

द्वारा सर्वश्री कुँवरजी उमरशी ऐंड कम्पनी
कूपरगंज

कानपुर

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९२५) की माइक्रोफिल्मसे।