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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने स्वास्थ्यके बारेमें आपने कुछ भी नहीं लिखा। वहाँकी आबोहवाके सम्बन्धमें लिखें। शंकरने आपको बहुत पत्र लिखे; लेकिन आपने उनमें से एकका भी उत्तर नहीं दिया है; ऐसी है उसकी शिकायत। इसका कारण क्या है?

बापूके आशीर्वाद

श्रीयुत काकासाहब
यवतमाल

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९२६) को माइक्रोफिल्मसे।

९८० पत्र : वी० आर० कोठारीको

आश्रम
साबरमती
३ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[१] मिल गया। जमनालालजी इस समय यहीं हैं। मैंने इसके बारेमें उनसे बात कर ली है। उनकी राय यह है कि आपकी संस्था सामान्यतः अच्छी है। वह एक साधारण किस्मका छात्रावास है, जिसमें दलितवर्गके लगभग २५ बालकोंकी देखभाल की जाती है। मेरे मित्र इस कामके लिए मुझे जो पूंजी देते हैं, वह बहुत बड़ी नहीं है। मेरी और मेरे सहयोगियोंकी नजरमें इस प्रकारकी कई संस्थाएँ हैं और उनमें से कुछ अपेक्षाकृत अधिक अच्छा काम कर रही हैं। हम उनकी सहायता कर रहे हैं। आपकी संस्थाको १०,००० रुपये देनेका मतलब एक तरहसे उसकी इमारतका पूरा खर्च देना होगा। आपने जब अपनी योजना शुरू की थी तब आपको मेरे जरिए कोई सहायता मिलनेकी आशा नहीं थी। मुझे तो यही लगता है कि आपको स्वयं ही कोशिश करके कुछ अन्य ऐसे लोगोंकी सहायता प्राप्त करनी चाहिए जो ऐसे कामोंमें भी दिलचस्पी लेते हों। मेरे लिए यह ठीक नहीं होगा कि मैं अपने न्यासपर एक इतनी बड़ी मदका खर्च डालूँ। मैं समझता हूँ कि ५,००० रुपयेकी राशि यदि इसी उद्देश्यके लिए इतनी ही जरूरतमन्द और कार्यक्षम कई संस्थाओंको दी जाये तो यह रकमका ज्यादा अच्छा उपयोग होगा। मैंने यह पत्र जमनालालजीको

  1. कोठारीने ९ मार्च, १९२६ को शोलापुर जिलेके दलितवर्गोंके लिए एक छात्रावास बनानेके लिए गांधीजी द्वारा दी गई ५,००० रुपयेकी सहायताका उल्लेख किया था और अधिक रुपयेकी सहायताका अपना अनुरोध दोहराया था। जमनालाल बजाज उनको संस्था देखने गये थे (एस० एन० १११२०)। देखिए खण्ड ३० भी। कोठारीने २८ जूनको अपने अनुरोधको याद दिलाते हुए गांधीजीको एक पत्र लिखा। ( एस० एन० १११८८)।