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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए उन है, लेकिन चूँकि आपने राज्य कार्य भी अभी बिलकुल छोड़ा नहीं है, भाईकी पुकार आपतक पहुँचाई जा सकती है। ये भाई लिखते हैं : जानता। इस[१] भावनगर में मरे पशुओंको उठानेकी व्यवस्था है, यह तो मैं नहीं बारेमें पूछताछ करके जैसा उचित लगे वैसी कार्रवाई करें। राज्य एक चर्मालय स्थापित करके मृत पशुओंको ठिकाने लगानेकी व्यवस्था खुद ही क्यों नहीं करता? वस्तुतः देखा जाये तो राज्यको एक आदर्श दुग्धशाला खोलकर बच्चोंके लिए बहुत सस्ते और स्वच्छ दूधको व्यवस्था करनी चाहिए। वह वैसी व्यवस्था क्यों नहीं करता?

सर प्रभाशंकर पट्टणी
भावनगर

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६५७) की फोटो-नकलसे।

११५. टिप्पणियाँ

भारत सेवक समाज ( सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी ) को सहायता

परम माननीय श्रीनिवास शास्त्रीकी अपीलपर कुल चन्दा लगभग ५०,००० रुपये आया है।[२] यह स्मरण रहे कि संस्थाको कमसे कम दो लाख रुपयेकी जरूरत है; इतने रुपये मिल जायें तो संस्था अपने रुके हुए कार्यको फिर शुरू कर सकती है। उसके साप्ताहिक अखबार 'सर्वेन्ट ऑफ इंडिया' को निकालते जानेमें बड़ी कठिनाई हो रही है। आशा है कि यह पूरी रकम जल्दी ही मिल जायेगी और इसमें राजनीतिक विचारोंका खयाल नहीं किया जायेगा।

त्यागकी सीमा

एक राष्ट्रीय महाविद्यालयके भूतपूर्व आचार्य जो एम० ए० भी हैं, लिखते हैं :

'आत्मत्याग'[३] शीर्षक आपका लेख पढ़कर हृदयको बड़ी चोट लगी। जिन्होंने पहले ही अपना सब-कुछ देशपर वार दिया है और जो आज भी देशपर सर्वस्व निछावर कर देनेके लिए तत्पर रहते हैं, उनसे तो आप और त्यागकी अपेक्षा करते हैं परन्तु उन चेलोंको, जो आपके अनुयायी होनेकी आड़ में राष्ट्रीय आन्दोलनसे निजी फायदा उठाते हुए नहीं लजाते, आप कभी नहीं फटकारते। यदि आप कुछ ऐसे अमीर आदमियोंको जुटा लें जिनमें से प्रत्येक

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें पत्रलेखकने एक ऐसे व्यक्तिके बारेमें, जिसे भावनगर राज्यने मृत पशुओंको उठानेका एकाधिकार प्रदान किया हुआ था, शिकायत की थी कि वह पशुओंकी अन्धाधुन्ध हत्या करने या करवानेका प्रयत्न करता है।
  2. देखिए "भारत सेवक समाज सहायता कोष" ५, २४-६-१९२६ ।
  3. देखिए "आत्मत्याग", २४-६-१९२६।