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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हाँ, तुलसी मेहर आश्चर्यजनक रूपसे अच्छा काम कर रहा है।

तुम्हारा,

अंग्रजी प्रति (एस० एन० १९६५९) की फोटो-नकलसे।

१२१. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको

आश्रम
साबरमती
बृहस्पतिवार, ८ जुलाई, १९२६

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र मिला। मुझे तो थोड़े दिनोंके लिए आपके कन्धोंसे राज्यका भार उतारना था। वह अगर उतर जाये तो आपकी तबीयत बहुत जल्दी ठीक हो जाये, ऐसा मेरा खयाल है। अब यहाँ कुछ-कुछ बरसात हुई कही जा सकती है! बादल तो हर समय छाये रहते हैं। इसलिए यदि आप बाहर निकले ही हैं तो यहाँ आपके आनेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं दिखाई देती और फिर ध्रांगध्रा और अहमदाबादके मौसममें कोई भारी अन्तर तो होता भी नहीं हैं। इसलिए यदि आ सकें तो जरूर आयें। इससे आपकी तबीयतकी कुछ जानकारी तो मुझे अवश्य ही मिलेगी और यदि आप मुझे कुछ छोटे-मोटे प्रयोग करने देंगे, जो आपको अनुकूल पड़ें, तो आहार में ऐसे परिवर्तनके प्रयोग भी मैं करूँगा। यहाँ प्रार्थीको तो साथ नहीं लायेंगे न? लेकिन मुझे यहाँ आनेके लिए कोई शर्त थोड़े ही लगानी है? इसलिए आप यहाँ अपनी शर्तपर ही आयें; पर आयें जरूर।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (जी० एन० ५८८८) की फोटो-नकलसे।