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पत्र : प्यारेलाल नैयरको

और आत्म-निर्भरताकी सच्ची भावना अपने अन्दर पैदा कर ली है तो वे बहुतेरी ऐसी चीजें ही सीखें, जो वे अपने देशभाइयोंसे और स्कूलों तथा कालेजोंसे बाहर रहकर ही सीख सकते हैं; दूसरे शब्दोंमें कहें तो हमें अपने हाथ-पैरोंसे काम करना सीखना चाहिए। इसे हम अपने देशमें अपने ही कारीगरोंसे स्कूलों और कालेजोंसे बाहर सीख सकते हैं।

जहाँतक पशुचिकित्सा सम्बन्धी शिक्षाका सवाल है फिलहाल हम राष्ट्रीय संस्थाओं में जो-कुछ सीख सकते हैं, उसपर ही सन्तोष करना चाहिए।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६६०) की माइक्रोफिल्मसे।

१२८. पत्र : प्यारेलाल नैयरको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, ९ जुलाई, १९२६

चि० प्यारेलाल,

मैं तुम्हें पत्र लिखनेका हर रोज विचार करता हूँ, और वह काम हर रोज रह जाता है। तुमने यह तो बेशक नहीं समझा होगा कि ऐसा मेरी उदासीनताके कारण हो रहा है। मथुरादासने तुम्हें बहुत अच्छा प्रमाणपत्र दिया है, लेकिन सच्चा प्रमाणपत्र तो जो मैं तुम्हें दूंगा, वहीं माना जायेगा। और मैं तभी दूंगा जब मथुरादास थोड़ा सशक्त हो जाये और तुम्हारा स्वास्थ्य भी इतना सुधर जाये कि यहाँ आनेके पश्चात् मुझे तुम्हारी कोई चिन्ता न करनी पड़े। तुम जिस प्रकार गुजरातीका अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हो, उसी प्रकार अंग्रेजी तथा गुजरातीका हिन्दी अनुवाद करो और उसे मेरे पास भेजो— यह फिलहाल केवल मेरे देखनेके विचारसे।

तुम वहाँ कितना घूमते हो? देवलाली तथा पंचगनीके बाजारों और पंचगनी तथा देवलालीके निवासियोंकी भी तुलना करना। पंचगनीमें चार या पाँच हाई स्कूल हैं। उन सबमें जाना और उनकी हालतको समझना। गुजराती हाई स्कूलकी स्थिति आजकल कैसी है, इस बारेमें भी पूछताछ करना। यहाँ जो नये लोग आये हैं, उनके समाचार तो मिलते ही होंगे। जर्मन बहन बहुत ही विनयशील तथा भली हैं। कृष्णदास इस समय प्रसन्न है। सतीश बाबू और उनके पिता दोनों काफी बीमार हैं; इसलिए यह सोचना है कि वे जहाँ रहते हैं वहीं अर्थात् चांदपुरमें रहें या दरभंगामें। कृष्णदासको पत्र लिखना। उसका पता[१] है: द्वारा एस० सी० गुहा, दरभंगा तुम्हारा निबन्ध मिल गया है, परन्तु मैं अभी उसे पढ़ नहीं सका हूँ।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२१९६) की फोटो-नकलसे।

  1. मूलमें पता अंग्रेजीमें है।