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१३३. पत्र: ए० ए० पॉलको

आश्रम
साबरमती
१० जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

प्रस्तावित चीन-यात्राके विषयमे आपका पत्र[१] मिला। यदि सचमुच ही चीनको मेरी जरूरत हो और यदि सन्तोषजनक निमन्त्रण प्राप्त हो तो जहाँतक मनुष्य निश्चित रूपसे कह सकता है, मैं निश्चय ही अगले साल चीनकी यात्रा करूंगा। परन्तु मेरे जैसे विविध कार्य करनेवाले कार्यकर्त्ताओंके बारेमें १२ महीने बाद होने वाली बातोंके बारेमें कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। केवल इसी कारणसे मैं सावधानीके साथ जवाब दे रहा हूँ। हो सकता है कि मेरे वशसे बाहर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जायें और मेरा भारत छोड़ना असम्भव हो जाये।

यदि वे इसी साल मुझे बुलाना चाहते हों तो अब चूँकि मैं फिनलैंड[२] नहीं गया हूँ। मेरा कुछ अधिक निश्चित जवाब दे सकना आसान होगा। लेकिन उस हालत में कुछ ही दिनोंकी यात्रा हो सकती है। मुझे कांग्रेसके लिए समयपर लौटना जरूरी है। इसलिए मैं अपने चीनी मित्रोंको सलाह दूंगा कि वे अगले वर्ष आनेकी सम्भावनामें थोड़ी अनिश्चितताकी गुंजाइश रखकर उसे ही ठीक माने। लेकिन इसका फैसला उन्हींको करना है।

हृदयसे आपका,

श्री ए० ए० पॉल

स्केइबाक
किलपॉक

मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११३७५) की फोटो-नकलसे।

  1. ए० ए० पॉलने भारत, बर्मा और श्रीलंकाकी "स्टूडेंट क्रिश्चियन एसोसिएशन" की ओरसे गांधीजीको चीन यात्रा के लिए आमन्त्रित करते हुए सर्वप्रथम २४ फरवरी, १९२६ को एक पत्र लिखा था (एस० एन० ११३६२)। गांधीजीने इस सम्बन्ध में उन्हें जो पत्र लिखे उनके लिए देखिए खण्ड ३०, “पत्र: ए० ए० पौलको”, ३-३-१९२६, १५-३-१९२६, ९-५-१९२६ और ३०-५-१९२६ ।
  2. २. हेलसिंगफोर्समें वाई० एम० सी० ए० के विश्व सम्मेलनके सिलसिले में गांधीजीके जानेकी बात थी। गांधीजीने अन्तमें उसमें जानेसे इनकार कर दिया था। देखिए खण्ड ३० ।