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एक महान देशभक्त

अनीतिसे जातिके रसस्रोत अविलम्ब सूख जाते हैं और उसके युवक क्षीण हो जाते हैं; वह उनका नैतिक और शारीरिक सत्व चूंस लेती है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १५-७-१९२६

१५०. एक महान देशभक्त

श्री उमर सोबानी अचानक अकाल मृत्युके ग्रास हो गये। एक महान देशभक्त और कार्यकर्ता हमारे बीचसे उठ गया। एक समय बम्बईमें श्री उमर सोबानीकी तूती बोलती थी। उनके दिन बिगड़नेसे पहले बम्बईका कोई भी सार्वजनिक कार्य ऐसा न होता था जिसमें उनका हाथ न हो। वह कोई वक्ता न थे। उन्हें भाषण देना सख्त नापसन्द था; वह कभी मंचपर सामने नहीं आते थे, मंचको तैयार भर कर देते थे। बम्बईके सौदागरोंमें वे बहुत प्रिय थे। उनकी सूझ प्रायः बहुत तीक्ष्ण और बेलाग हुआ करती थी। उनकी उदारता दोषकी हदतक पहुँच जाती थी। पात्र-कुपात्र सभीको वे मुक्तहस्त दान दिया करते थे। प्रत्येक सार्वजनिक कार्यके लिए उनकी थैलीका मुँह खुला रहता था। उन्होंने जैसा कमाया वैसा ही खर्च भी किया। उमर सोबानी जो काम करते हद दर्जेतक करते। उन्होंने सट्टेका काम भी हद दर्जेतक किया और इसीसे उनपर तबाही आ गई। एक महीनेमें ही उन्होंने अपनी आमदनीको दुगना कर लिया और दूसरे ही महीने उनका दिवाला भी निकल गया। उन्होंने अपनी हानिको तो बहादुरीसे सह लिया, परन्तु उनके स्वाभिमानने उन्हें सार्वजनिक कार्योंसे हटा लिया, क्योंकि अब इन कामोंमें खर्च करनेके लिये उनके पास लाखों रुपया नहीं बच रहा था। वह मध्य मार्गपर चलना जानते ही नहीं थे। यदि चन्देकी फेहरिस्त में सबसे पहले वे नहीं रह सकते तो बस फिर वे उस फेहरिस्त की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखेंगे। इसीलिए गरीबीके आते ही वे सार्वजनिक कार्योंसे हाथ खींचकर बैठ गये। जहाँ-कहीं और जब-कभी कोई सार्वजनिक कार्य होगा उमर सोबानीका नाम याद आये बिना न रहेगा और न उनकी देशसेवा ही कोई भूल सकेगा। उनका जीवन हर अमीर नौजवानके लिए आदर्श और चेतावनी दोनों है। उनका जोशभरा देशभक्तिका कार्य आदर्श बनानेके योग्य है। उनका जीवन हमें बताता है कि रुपये-पैसेवाला आदमी भी एक अच्छा आदमी हो सकता है और अपने पैसेको सार्वजनिक कामोंमें लुटा सकता है। उनका जीवन अमीर नौजवानोंको जो बड़े-बड़े काम करनेकी धुनमें रहते हैं, चेतावनी भी देता है। उमर सोबानी कोई मूर्ख व्यापारी नहीं थे। जिस समय उनको व्यापारमें हानि हुई उस समय और भी बहुतसे व्यापारियोंको हानि हुई थी। उन्होंने रुईकी जो अन्धाधुन्ध खरीद की थी उसको हम मूर्खता नहीं कह सकते। वे बम्बईके व्यापारियोंमें अच्छा स्थान रखते थे। फिर भी उन्होंने इस प्रकार रुपया क्यों लगाया? वे तो देशभक्तकी हैसियतसे प्रतिष्ठित बने रहना अपना कर्त्तव्य समझते। उनका जीवन और उनका नाम जनताकी जागीर था