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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि हमारे आपसी प्रेमका आधार दूसरोंके प्रति घृणा हो तो वह तनिक-सा बोझ पड़ते ही टूट जायेगा। सच तो यह है कि ऐसा प्रेम कभी सच्चा प्रेम नहीं होता। वह तो शस्त्र-रक्षित शान्ति जैसा है। ऐसा ही पश्चिमके युद्धविरोधी महान आन्दोलनका हाल भी हो जायेगा । युद्ध केवल तभी बन्द होगा जब मानवकी अन्तरात्मा इतनी ऊँची उठ जायेगी कि जीवनके हर क्षेत्रमें मानव प्रेमके नियमको ही निर्विवाद रूपसे सर्वशक्तिमान स्वीकार कर लेगा। कुछ लोगोंका कहना है कि ऐसा कभी नहीं होगा। अपने भौतिक अस्तित्वके रहते मैं अपना यह विश्वास कायम रखूंगा कि कभी-न-कभी ऐसा अवश्य होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ८-११-१९२६

१५२. पत्र : किर्बी पेजको

आश्रम
साबरमती
१५ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके ५ मईके पत्र तथा मेरे ९ जूनके तारके[१] सिलसिलेमें मैं आपको अहिंसाके विषयपर अपना लेख[२] भेज रहा हूँ।

आप मुझसे २,५०० शब्दका लेख चाहते हैं। मैं अभी इतना बड़ा लेख लिखनेकी नहीं सोच सकता। इसलिए जो-कुछ थोड़ा-बहुत मैं लिख सका हूँ, उसे ही भेज देनेके लिए आप मुझे क्षमा करेंगे। लेकिन यह लेख मैं आपके दिये हुए समयसे काफी पहले भेज रहा हूँ, इसलिए आशा है कि आपको उसके छोटे होनेसे असुविधा नहीं होगी। यों सच पूछें तो मैंने जितना लिखा है, उससे मैं सन्तुष्ट नहीं हूँ। यदि हो सकता तो मैं उसे और भी सारगर्भित संक्षिप्त रूपमें रखता।

हृदयसे आपका,

संलग्न : १ (३ पृष्ठ)
श्री किर्बी पेज
सम्पादक

" द वर्ल्ड टुमारो"
३४७, मडिसन एवेन्यू
न्यूयॉर्क

संयुक्त राज्य अमेरिका

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०७८१) की फोटो-नकलसे।

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