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१६०. पत्र: एस्थर मेननको

आश्रम
साबरमती
१६ जुलाई, १९२६

रानी बिटिया,

तुम्हारा पत्र मिला। १० रुपयेके बारेमें इतनी सारी सफाई क्यों? मुझे १० रु० या कुछ भी भेजनेके लिए यदि तुम काट-कसर करोगी तो मुझे इससे दुःख होगा। मैंने तुमको इसके बारेमें सिर्फ इसलिए लिखा था कि आश्रममें यह प्रश्न उठा था और इसकी चर्चा चली थी कि रुपया आया है या नहीं और यदि आया है तो क्या वह गलतीसे कहीं रख दिया गया है। यदि तुम उस खद्दरको रख लो और उसकी कीमत भेजनेकी बात न सोचो तो मुझे अधिक प्रसन्नता होगी। आखिरकार तुम्हें आश्रमवासियोंके भण्डारसे पुराना खद्दर ही तो भेजा गया है। यदि तुम्हें और खद्दरकी आवश्यकता हो तो निस्संकोच लिखना।

नैनीके[१] विकासके बारेमें जानकर मुझे खुशी हुई। मगर बड़ी होकर वह तीनों भाषाएँ समानरूपसे अच्छी बोल सके, तो यह एक बड़ी सफलता होगी। मुझे लगता है कि उसने जिद्दीपन अपनी माँसे पाया है और मृदुलता अपने पितासे। तुम तो शायद इससे उलटा ही कहोगी?

अभीसे यह कहना कठिन है कि अगले वर्ष में क्या करूंगा। लेकिन यदि मैं दक्षिण आया तो पोर्टो नोवो अवश्य आऊँगा। तुम सबको स्नेह,

तुम्हारा,
बापू

श्रीमती एस्थर मेनन

(पोर्टो नोवो)

एस० आई० आर०

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकलसे।

माई डियर चाइल्ड

  1. एस्थर मेननकी बड़ी कन्या।