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१६२. पत्र : डी० एन० बहादुरजीको

आश्रम
साबरमती
१६ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरे पास मार्गदर्शिका जैसी कोई चीज नहीं है जिससे आप यह जान सकें कि सूतमें अपेक्षित मजबूती किस प्रकार लाई जा सकती है। सूतके बलकी मजबूती मापनेका सरलतम तरीका यही है कि कातते समय सूतकी कूकड़ी जितनी कस कर लपेट सकें, लपेटें। यदि कता सूत इस कसावको सहने लायक मजबूत नहीं है तो कसी कूकड़ी बनाना असम्भव है। चरखेके चक्कर गिननेकी शायद ही जरूरत पड़ती हो। मेरे बताये तरीकेसे[१] सूतकी जाँच करनेके बाद आप अपने-आप मजबूत सूत कातने लगेंगे। इसमें सन्देह नहीं कि चरखेके अधिक चक्कर कातने-वालेकी गति बढ़ा देते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि इससे सूतकी मजबूती भी बढ़े। कितने अन्दाज और तनावके साथ आप सूत खींचते हैं, उसीपर सूतकी मजबूती रहती है। और बल तो सूतके खींचनेके साथ-साथ पड़ते जाते हैं। तकुएपर निर्भर सूत लपेटनेके पहले चरखेके अन्तिम दो-एक चक्करसे बल पूरे हो जाते हैं।

सूत इकसार है या नहीं, यह तो देखनेसे ही पता चल सकता है। सूतका महीन होना बढ़िया तकुए, रुईके रेशे और पूनियाँ कैसी बनी हैं, इसीपर निर्भर करता है। क्योंकि, आप वैज्ञानिक ढंगसे कताई कर रहे हैं, इसलिए मेरा सुझाव है कि आप धुनाई भी सीख लें। मेरी रायमें, धुनना श्रमसाध्य होनेपर भी बढ़िया धन्धा है। आपने कातना कैसे आरम्भ किया, इसका विवरण बहुत रोचक है। आपका परोक्ष उद्देश्य कुछ भी हो, जिस बातसे आपको कातनेकी प्रेरणा मिली है वह हर-एकके लिए पूर्णतः प्रेरणास्पद होनी चाहिए। मुझे खुशी है कि आप करोड़ों निरीह लोगोंके लिए चरखेके आर्थिक महत्त्वको समझते हैं। जब भी आप चाहें अपना सूत जाँचके लिए मेरे पास भेजनेमें संकोच न करें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६६७) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. देखिए, पत्र: डी० एन० बहादुरजीको, २७-६-१९२६ ।