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१७२. टिप्पणी

पाँच तलावड़ामें कपास संग्रह

भाई छगनलाल और माणिकलाल पाँच तलावड़ामें काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्की ओरसे काम करते हैं; उन्होंने जो हिसाब भेजा है वह निम्नलिखित है : कार्य ३२ गाँवोंमें फैला हुआ है। उनमें ७४५ मन रुई इकट्ठी हुई है। इसमें से २१६ मन रुई हाथसे लोढ़ी गई और ५२९ मन लुढ़ाई-कारखानेमें। उसके २,६८१ थान अर्थात् ५३,६२० गज खादी तैयार हुई। वहाँ अवतक लगभग २० रुपयेकी मदद देनी पड़ती है। अनेकोंको उनकी मितव्ययताके कारण मदद देनेकी जरूरत नहीं पड़ी। इसके अतिरिक्त पैसा देकर जो सूत कतवाया और बुनवाया गया उसकी २,५८८ गज खादी तैयार हुई। उपर्युक्त कपासका संग्रह ६४० परिवारोंमें हुआ। कपास-संग्रह के अन्तर्गत २० पिंजारे और १०० बुनकर काम करते थे। पिंजारोंके घरमें लगभग १,२०० रुपये और बुनकरोंके घरमें लगभग ४,००० रुपये गये। ये रकमें किसानोंकी ओरसे ही चुकवाई गईं। ६४० परिवारोंमें पैसेकी मदद लेनेवाले केवल ७४ परिवार[१] थे। इसपर टिप्पणी करते हुए ये दोनों सज्जन लिखते हैं कि हमारे कार्यकी सफलता कपासके संग्रहमें निहित है, क्योंकि इस कार्यको करवाते समय हमें अपने देशकी गरीबीका ध्यान आता है। इससे इस बातका अनुभव होता है कि हमारा वास्तविक कार्य गाँवोंमें ही है। गाँवोंके लोगोंमें उसके अन्तर्गत अन्य सामाजिक कार्य भी किया जा सकता है। निठल्ला बैठना कितना भयंकर रोग है, लोगोंको यह बात चरखेकी मार्फत अच्छी तरह समझाई जा सकती है। जहाँ स्वयंसेवक सेवाभावसे काम करते हैं वहाँ भ्रातृभाव उत्पन्न होता है। कपासका संग्रह करवानेसे खादी बेचनेकी मुश्किल दूर हो जाती है।

उपर्युक्त संग्रह-कार्यके अतिरिक्त इन भाइयोंने मजदूरी देकर १०० स्त्रियोंसे सूत कतवाया। कताईकी मजदूरी प्रति नम्बर ६ पाई रखी गई थी। प्रत्येक स्त्रीकी मासिक कमाई ढाई रुपयेसे लेकर ३ रुपये तक थी। उन्होंने ४ नम्बरसे लेकर आठ नम्बर तकका सूत काता। इतनी स्त्रियोंके लिए पूनियाँ तैयार करनेमें दो पिंजारों और २० बुनकरोंने काम किया। पिंजाईकी दर प्रति मन २ रुपये १० आना दी गई। बुनकरोंको २४ से २७ इंच पनेकी खादीकी बुनाई एक मनपर ८ रुपये और ३० इंचकी खादीकी बुनाई एक मनपर १० रुपये दी गई । २१६ इंच पनेकी पगड़ीकी खादीकी बुनाई प्रति मन १२ रुपये दी गई। पगड़ीकी लम्बाई १८ हाथ होती है। इस तरह कताईमें रु० १८५-८-०; पिंजाईमें रु० ६५-४-०; बुनाईमें रु०२३२-८-० और लुढ़ाईमें रु०४-०-०; तथा कुल मिलाकर रु०४८७-४-० खर्च हुए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १८-७-१९२६
  1. यहाँ ७ होना चाहिए, पह भूल नवजीवनके अगले अंकमें सुधार ली गई थी।