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वह गोलमेज परिषद्

यह कहा जा सकता है कि यह परिषद यूरोपीय मतको ठीक दिशामें प्रवाहित कर सकेगी।

और दक्षिण आफ्रिकासे एक आयोगके हिन्दुस्तान आनेकी बात भी एक अच्छी बात है। जो बातें केवल खुद आनेसे ही मालूम की जा सकती हैं, आयोगको वे बातें तभी मालूम होंगी। पुस्तकें या समाचारपत्र चाहे कितने ही क्यों न पढ़े जायें और प्रतिनिधियोंसे चाहे कितनी मुलाकातें क्यों न ली जायें, उस सबसे उतनी जानकारी हरगिज प्राप्त नहीं हो सकती जितनी सम्बन्धित स्थानपर पहुँचकर वहाँके लोगोंको रूबरू देख-समझकर की जा सकती है।

यह भी अच्छा है कि इस आयोगमें ऐसे अग्रगण्य लोग हैं जो इस मामलेके जानकार माने जाते हैं। हमारा पक्ष इतना न्यायपूर्ण है कि कोई जितना ही इसके अन्दर पैठेगा, उससे हमारा उतना ही हित होगा। यदि इस सम्बन्धमें सूक्ष्म छानबीन और तथ्योंका व्यापक प्रचार होता है तो उससे हमारा कोई नुकसान होनेवाला नहीं है। दक्षिण आफ्रिकासे लोग जितना हमारे यहाँ आयें हमारे लिये उतना अच्छा है। समझौतेके मार्गमें सबसे बड़ी कठिनाई यही तो है कि भारतीय प्रश्नके बारेमें नेकसे-नेक दक्षिण आफ्रिकानिवासी भी अनभिज्ञ हैं। वे तो केवल स्वार्थी गोरे व्यापारियोंकी माँगें क्या हैं, इतना ही जानते हैं। वे भारतीयोंके पक्षकी तो कोई भी बात नहीं जानते। यदि इस परिषदके फलस्वरूप इस प्रश्नपर गम्भीरतासे विचार होने लगा तो यह भय कि हिन्दुस्तानी लोग आफ्रिकामें छा जायेंगे या यह कि जो भारतीय वहाँ पहलेसे ही बसे हुए हैं वे गोरोंके प्रतिस्पर्धी बन जायेंगे, क्षणभरमें जाता रहेगा।

लेकिन परिस्थितिका दूसरा भी एक पहलू है। जनरल हर्टजोगके जो भाषण हुए हैं, वे चिन्ताजनक हैं। यदि वहींके निवासियोंके साथ इन्साफ नहीं किया गया है तो मुझे यह सम्भव नहीं जान पड़ता कि हिन्दुस्तानियोंके प्रति न्याय किया जायेगा। दोनों जातियोंके सम्बन्धमें गोरोंकी मनोवृत्ति तो एक ही सी है; बल्कि असंदिग्ध रूपसे हिन्दुस्तानियोंके बारेमें वह कहीं ज्यादा खराब है। कहा जाता है कि वतनी लोग तो गोरोंकी कृपादृष्टि पानेका कुछ हक भी रखते हैं; किन्तु हिन्दुस्तानी लोग तो वहाँ सिर्फ बाहरसे आकर जम जानेवाले विदेशी-भर हैं। लोग यह बिलकुल भूल ही जाते हैं कि पहले-पहल हिन्दुस्तानी लोग ही गोरोंके निमित्त शारीरिक श्रमका काम करने के लिए दक्षिण आफ्रिका जानेके लिए फुसलाकर वहाँ बुलाये गये थे; और उनसे यह वादा भी किया गया था कि तुम लोग वहाँ सुविधाके साथ सदाके लिए बस कर रह सकोगे। लेकिन अब प्रश्न यह नहीं है कि उनको उस समय क्या-क्या वचन दिये गये थे, बल्कि अब सवाल यह है कि इस समय वहाँके भारतीयोंके प्रति गोरोंकी वृत्ति क्या है। और चूंकि गोरोंके मनमें हिन्दुस्तानियोंके प्रति बहुत कटुता है इसलिये यदि वतनी लोगोंके साथ अन्याय किया गया है तो हिन्दुस्तानियोंके साथ इन्साफ किये जानेकी आशा नहीं की जानी चाहिए। इसी बातको हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि वहाँके निवासियोंके साथ न्याय करनेकी इच्छाका आधार स्वार्थ है; यदि हम जरा नीचे तहमें उतरें तो हमको मालूम होगा कि दूसरेके हक छीन