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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शायद इसमें आपके सभी मुद्दोंकी चर्चा हो गई है। आशा करता हूँ कि आपको मेरा पत्र सुस्पष्ट लगेगा। सम्भव है कि मैं सभी बातोंमें आपको अपने दृष्टिकोणसे सहमत न बना पाया होऊँ। अगर आप कहेंगे तो खुशीके साथ बहसको जारी रखा जा सकेगा।

इस महत्वपूर्ण समस्याका, जो हमारे जीवन-मरणका प्रश्न है, अत्यन्त सतर्कता और संहृदयताके साथ अनुशीलन करनेके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।[१]

हृदयसे आपका,

डा० नॉर्मन लीज

ब्रेल्सफोर्ड

डर्बीके समीप

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२१६९) की फोटो-नकलसे।

१९८. पत्र : ई० स्टेनले जोन्सको

आश्रम
साबरमती
२३ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

रोचक टिप्पणियों-युक्त आपका पत्र मिला। धन्यवाद। आपके आनेसे हम सबको बड़ी ही प्रसन्नता हुई। काश! आप हम लोगोंके साथ और अधिक रह सकते। तब शायद आश्रमके बारेमें आपने जो-कुछ लिखा है उसे आप थोड़ी नरम भाषामें लिखते और उसके स्वावलम्बी बननेके विषयमें अपनी आलोचनापर भी पुनर्विचार करते। जबतक हम चरखे और अस्पृश्यता आदिके विषयमें जनसाधारणके बीच प्रचार और शिक्षाका प्रसार करनेका काम हाथमें लेकर चल रहे हैं, तबतक आश्रमको आत्मनिर्भर बनाना हमारा ध्येय नहीं है।

कबूतरोंके लिए काबुक बनानेका सुझाव एक और मित्रने भी दिया था। हमने यह इसलिए नहीं बनाया क्योंकि कहा यह गया कि इससे और कबूतरोंका आना शुरू हो जायेगा। जिन्होंने कुटियोंकी छतोंको अड्डा बना लिया है वे वहीं बने रहेंगे। क्या आपने इसे सफलताके साथ आजमाया है?

जो "साइंस ऑफ पॉवर" पुस्तिका आपने मेरे लिए मँगवाई है, मैं उसे पढ़नेका प्रयत्न करूंगा।

  1. डा० नॉर्मन लोजने इस पत्रका उत्तर ९ अगस्त, १९२६ को दिया था। (एस० एन० १२१७०) देखिए परिशिष्ट २ ।