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लगनका पुरस्कार

नहीं मानना चाहिए, इसे केवल इच्छा ही कहना चाहिए। क्योंकि किया तो कोई भी ऐसी नहीं है जिसके बिना जीना खत्म हो जाये। सच कहें तो यह कोई आवश्यकता ही नहीं है। आदमीने इसे केवल ऐसा मान लिया है। वे अपनी इच्छाओंको जिस रूपमें देखते हैं उसके कारण सम्भोगको नितान्त आवश्यक मानने लगते हैं। किन्तु हम इसे प्राकृत नियमोंका विवश और तटस्थ पालन कदापि नहीं मान सकते, क्योंकि वास्तवमें यह स्वेच्छाप्रेरित किसी पूर्व संकल्पकी परिणति ही है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-७-१९२६

२३६. लगनका पुरस्कार

डोंडाइच पश्चिम खानदेशके एक राष्ट्रीय विद्यालय के प्रधानाध्यापक लिखते हैं[१] :

इस विवरणसे साफ पता चलता है कि लगन क्या कुछ कर सकती है। १५० लड़कोंके साथ यह विद्यालय केवल इसलिए राष्ट्रीय नहीं कहा जा सकता कि यह सरकारके संरक्षणमें नहीं चल रहा है। किसी विद्यालयको, राष्ट्रीय कहलानेके लिए, कांग्रेसके द्वारा दी हुई परिभाषाके अनुसार होना चाहिए। इसके अनुसार, अन्य बातोंके साथ, उसमें कताई भी होनी चाहिए और बालकों तथा बालिकाओंको खादी जरूर पहननी चाहिए। मातृभाषाके अतिरिक्त पाठशालामें उन्हें हिन्दी रखनी चाहिए। परन्तु अनेक ऐसे विद्यालय, जो कि यद्यपि कांग्रेसकी इन शर्तोंके अनुसार नहीं चलते हैं, भूलसे राष्ट्रीय कहे जाते हैं। इसलिए अपने विद्यालयमें खादी और कताईको दाखिल करनेके उपलक्षमें प्रधानाध्यापक महोदय हमारी बधाईके पात्र हैं। मैं आशा करता हूँ कि इस विद्यालयकी समिति प्रधानाध्यापक महोदयके इस प्रयत्नको बढ़ावा देगी। प्रधानाध्यापकको भी यह जान लेना चाहिए कि यदि वे कताईका काम सफल होते देखना चाहते हैं, तो उनके विद्यालयमें लड़कों द्वारा रुईकी धुनाईको दाखिल करना भी निहायत जरूरी है। कताईके पहलेकी सब क्रियाएँ जाने बिना कोई सच्चा कतैया नहीं कहा जा सकता।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-७-१९२६
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। पत्रमें प्रधानाध्यापकने लिखा था कि उन्होंने उन विद्यार्थियों और शिक्षकोंमें जिनकी कातनेकी ओरसे रुचि हट गई थी, किस प्रकार फिरसे तकली-कताईको प्रिय बनाया।