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पत्र : पैन– एशियाटिक सोसाइटी, पीकिंगको

चाहता हूँ। मैं यह भी लिख दूं कि मैंने आपके चरखा सम्बन्धी उपदेशको हमेशा व्यवहार्य एवं गरीब निस्सहाय देशवासियोंको उनकी वर्तमान शोचनीय अवस्थासे उबारनेवाला सस्ता साधन माना है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-७-१९२६

२३८. पत्र : पैन-एशियाटिक सोसायटी, पीकिंगको

आश्रम
साबरमती
२९ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र

,

विभिन्न राष्ट्रोंमें भ्रातृभावनाको बढ़ावा देनेके लिए जो भी मुझसे हो सकता है वह तो मैं करूँगा ही, लेकिन मैं किसी भी ऐसी संस्थाका सदस्य बननेके बारेमें सावधानी बरतता हूँ, जिसे मैं अच्छी तरहसे नहीं जानता। किसी भी एशियाई संघमें भौतिक बलकी दृष्टिसे एक सशक्त और अन्य कई अशक्त जातियाँ शामिल रहेंगी। हालांकि जापानियोंने जो प्रगति की है उसमें बहुत सी बातें सराहनीय हैं, लेकिन आप मुझे यह कहने के लिए क्षमा करेंगे कि मैं उनकी इस प्रगतिपर मुग्ध नहीं हूँ। मैं यह सिद्ध करनेमें लगा हुआ हूँ कि भौतिक बलके आधिक्यको आत्मिक बलके द्वारा— यदि ऐसा कहना युक्त हो— जीतना सम्भव है। इसलिए आप मुझे अपने आन्दोलनमें शामिल न होने के लिए क्षमा करें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

पैन-एशियाटिक सोसाइटी

७०, ईस्ट ४८८

पीकिंग

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०७८६) की फोटो-नकलसे।