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२४१. पत्र : एच० एस० वॉल्डो पोलकको

आश्रम
साबरमती
२९ जुलाई, १९२६

प्रिय वॉल्डो,[१]

तुम्हारा पत्र पाकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई। तुम इतने बड़े और समझदार हो गये हो कि शायद मेरा तुम्हें यह याद दिलाना कि जब तुम बच्चे थे तब तुम मेरे साथ सोया करते थे, उचित न लगे।

तुम्हारी गति विधियाँ,[२] निस्सन्देह, शाही हैं। ब्रिटिश फासिस्टोंका तुमने जो विवरण दिया है वह दिलचस्प है। चूँकि तुम अपना नाम इटलीके फासिस्टोंके साथ नहीं जुड़ने देना चाहते इसलिए अगर तुम अपनी गतिविधियोंके लिए कोई अन्य कार्यक्षेत्र चुनते तो कितना अच्छा होता।

वर्तमान मतदाताके बारेमें तुम्हारा जो अनुमान है वह बिलकुल सही है।[३] लेकिन जिस शिक्षित मतदाताको तुम वर्तमान मतदाताके स्थानपर देखना चाहते हो, उसके बारेमें मेरा अनुभव कोई बहुत आशाप्रद नहीं है। बड़े-बड़े बैरिस्टरतक अपनी रुचिके समाचारपत्रोंसे प्रेरणा ग्रहण करके अपना राजनीतिक दृष्टिकोण बनाते हैं। इस बुराईका मूल कारण जरूरी नहीं कि हमारी बुद्धिकी सीमाओंमें निहित हो बल्कि यह है कि हमारे हृदय विकृत हो गये है । लेकिन मुझे तुम्हारे साथ बहस तो करनी नहीं है। मैं तुम्हें अपनी शुभ कामनाएँ भेजता हूँ। मेरी कामना है कि तुम दीर्घ, सुखी तथा उपयोगी जीवन व्यतीत करो।

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

श्री एच० एस० वॉल्डो पोलक

३३, मोब्रे रोड
ब्रॉन्डस्बरी

लन्दन, एन० डब्ल्यू०

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०७९१) की फोटो-नकलसे।

  1. हेनरी पोलकके पुत्र।
  2. वॉल्डो 'लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स' और 'मिडल टेम्पल' का विद्यार्थी था। वह 'फेडरेशन ऑफ ब्रिटिश यूथ' में सक्रिय रूपसे भाग लेने के साथ-साथ ब्रिटेनके राष्ट्रवादी फासिस्टोंसे अलग 'ब्रिटिश फासिस्ट' नामको संस्थाका सदस्य भी था। इस संस्थाका उद्देश्य उसने साम्राज्य और देश में एकता स्थापित करना बताथा था।
  3. वॉल्डोने लिखा था कि साधारण मतदाता अध्ययनमें अरुचि और समयके अभावके कारण अखबार पढ़कर अपना मत स्थिर कर लेता है।