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२५१. पत्र : सतीशचन्द्र मुकर्जीको

प्रिय सतीशबाबू,

आपका पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। यह जानकर और भी खुशी हुई कि आप पहलेसे अच्छे हैं। आप कृपया कृष्णदासको तबतक अपने साथ रखें, जबतक आपका स्वास्थ्य इतना न सुधर जाये कि आपको किसी प्रकारकी मददकी जरूरत न रहे। मेरे पास डा० मेरी स्टोप्स[१] द्वारा लिखी एक पुस्तक है। आपने जो लेख मुझे भेजा है वह उनकी पुस्तककी अच्छी खासी टीका है। सचमुच पश्चिममें विवाह अपनी पवित्रताको खो बैठा है और यह अभागा देश भी यौन सम्बन्धोंकी उच्छृंखलताका शिकार होता जा रहा है। आपने जिन पुस्तकोंकी चर्चा की है, मैं श्री गणेशनसे उन्हें प्राप्त करनेकी कोशिश करूँगा।

गोहाटीमें जो कांग्रेस अधिवेशन होनेवाला है, मैं सम्भवतः उसमें जाऊँगा। मैंने एक वर्षतक यात्रा न करनेका निश्चय कर रखा है; जब यह अवधि समाप्त हो जायेगी तब मेरी गतिविधियाँ क्या होंगी, इसके बारेमें अभी निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सतीशचन्द्र मुकर्जी

मार्फत श्री एस० सी० गुहा

दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६७७) की माइक्रोफिल्मसे।

२५२. पत्र : एस० एच० थत्तेको

आश्रम
साबरमती
३० जुलाई, १९२६

आश्रम
साबरमती
३० जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पहला पत्र पहुँच तो यथासमय गया था, परन्तु वह मुझे सामान्य नियमानुसार दिया गया पिछले सप्ताह ही। आप देखेंगे कि आपने मुझे जो जानकारी दी थी, उसका मैंने 'यंग इंडिया' में पूरा-पूरा उपयोग किया है।[२] आपकी देखरेख में

  1. आइडियल मैरिज पुस्तककी लेखिका।
  2. "देखिए लगन का पुरस्कार",२३-७-१९२६