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पत्र : नानाभाई भट्टको

न पछतानेकी। जातिमें तुम्हारा प्रभाव कम हो जायेगा तो तुम्हारी रुपया लानेकी शक्ति अवश्य कम हो जायेगी। परन्तु तुम्हें उसकी कोई चिन्ता नहीं। तुम्हें भीख भी माँगनी पड़े तो भी चिन्ता नहीं। धर्म रहे और भिक्षुक बनना पड़े तो उसका स्वागत करना चाहिए। अन्तमें जब जाति तुम्हारे धर्म और विनयको पहचान लेगी, तब वह स्वतः नम्र बन जायेगी। जातियोंमें सुधार तो किये ही जाने चाहिए और वे इस प्रकार आसानीसे किये जा सकेंगे।

अन्नाको छापाखाना खरीदनेके लिए अभी ८००० रुपये और भेजनेकी जरूरत है। वे यहाँ आये थे। उनके लिए छापाखाना खरीदने लायक व्यवस्था कर देनी चाहिए। यदि घनश्यामदासने ५,००० रुपये वापस न भेजे हों तो उन्हें याद दिला देना । ये रुपये आ जायें तो इनमें ३,००० रुपये अपने पाससे मिलाकर भेज देना; और अगले महीने में काट लेना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २८७१) की फोटो-नकलसे।

२५४. पत्र : नानाभाई भट्टको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, आषाढ़ बदी ६, ३० जुलाई, १९२६

भाई नानाभाई,

जानकारीके लिए भाई मोहनलाल पण्ड्या द्वारा प्राप्त पत्र आपको भेजता हूँ। इसे मेरे पास वापस भेजना जरूरी नहीं है। यदि इसमें दिये हुए तथ्य ठीक हों और हमसे सहायताकी प्रार्थना की गई हो तो पहले हमें हर बातका स्पष्टीकरण करा लेना चाहिए।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२२८) की फोटो-नकलसे।