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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वृद्ध और बाल विवाह करनेवाले लोगोंका धर्मरक्षा, गो-रक्षा और अहिंसाकी बात करना हास्यास्पद ही होगा। इसी तरह करने लायक सामान्य सुधारोंको ताकपर रखकर स्वराज्य इत्यादिकी बड़ी-बड़ी बातें करना आकाश-कुसुम तोड़नेके समान है। जिनमें स्वराज्य लेनेका उत्साह आ गया है, उनमें साधारण सामाजिक सुधारकी योग्यता तो उससे पहले ही आ जानी चाहिए। स्वराज्य लेनेकी शक्ति तन्दुरुस्तीकी निशानी है और जिसका एक भी अंग रोगी हो हम उसे तन्दुरुस्त नहीं मान सकते। प्रत्येक नवयुवक और प्रत्येक देश-हितचिन्तकको यह बात सदा याद रखनी चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १-८-१९२६

२६२. भूल सुधार

१८ जुलाईके ‘नवजीवन' के अंकमें "सूतका बल और प्रकार" शीर्षकसे जो लेख छपा है उसके दूसरे अनुच्छेदमें यह दिया गया है : 'जिनका सूत मण्डलके पास आया था वे सब यज्ञार्थ कातनेवाले हैं। मेरे पास जो पत्रिका आई थी मैंने उससे यह अर्थ निकाला था; लेकिन अब मुझे मालूम हुआ है कि सूतकी यह किस्म यज्ञार्थ कातने-वालोंके सूतकी नहीं वरन् मजदूरी लेकर कातनेवालोंके सूतकी थी । इस भूल-सुधारका तात्पर्य यह है कि मजदूरी देकर जो सूत कतवाया जा रहा है उसकी मजबूती तो सब स्थानोंपर प्रमाणमें कम ही आती है। किस्ममें अकल्पित सुधार तो यज्ञार्थ काते हुए सूतमें ही हुआ है और यह ठीक भी है। यज्ञार्थ कातनेवाले ज्ञानपूर्वक कातते हैं। उनमें गरीबोंके प्रति दया निहित है। इससे वे अपने सूतकी किस्ममें दिन-प्रतिदिन सुधार करते हैं जबकि मजदूरीपर कातनेवाले दीर्घदृष्टिसे अपने स्वार्थको नहीं समझ सकते और न सूतकी किस्म सुधारनेकी कलाको जान सकते हैं। इसीलिए यद्यपि उन्हें कातनेका वर्षोंका अनुभव है तथापि उनकी कलामें सुधार होनेमें अवश्य समय लगेगा। यज्ञार्थ कातनेवाले अभी थोड़े समयसे ही कात रहे हैं तथापि यदि वे चाहें तो वायुके वेगसे प्रगति कर सकते हैं। यज्ञार्थ कातने में यह भारी उपयोगिता और आवश्यकता निहित है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १-८-१९२६