पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/३१९

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२९४. पत्र : रामानन्दको

आश्रम
६ अगस्त, १९२६

भाई रामानंदजी,

आपका पत्र मिला है। दलितोद्धारके कार्यमें मैं आपको कया मदद दे सकता हूँ? जिसके संरक्षक स्वयं स्वामीजी [१] हैं उसको मेरी मदद कया हो सकती है? दलितोंकी सेवाके लीये जिनके पास मैं जा सकता हूं उन्हींके पास स्वामीजी भी जाते हैं। जुगलकिशोरजीके[२] पास मेरी शीफारस कया और काम कर सकती है? आपकी पत्रिका 'यं० इं०' की दृष्टिसे बहुत अनिश्चित है।

आपका,
मोहनदास

श्री रामानंदजी

दलितोद्वार सभा

दिल्ली

मूल पत्र (एस० एन० १९९४२ ए) की माइक्रोफिल्मसे।

२९५. पत्र : देवेन्द्रनाथ मैत्रको

आश्रम
साबरमती
७ अगस्त, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। निश्चय ही 'खद्दर' शब्दमें सभी घरेलू उद्योग शामिल नहीं हैं। लेकिन वह उनका विरोधी भी नहीं है। यज्ञार्थ कर्मके रूपमें कताई करना निस्सन्देह प्रत्येक मनुष्यके लिए आवश्यक है। फिर वह चाहे किसी भी कुटीर उद्योगमें

लगा हो। यज्ञार्थ कर्मके रूपमें अपने खाली वक्तमें कताई करनेवाला मनुष्य निश्चय ही उस मनुष्यसे कहीं अधिक अच्छा काम करता है जो धनोपार्जनकी दृष्टिसे अधिक

  1. स्वामी श्रद्धानन्द।
  2. जुगलकिशोर बिड़ला