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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री ब्यूरो स्वच्छन्द प्रेमके तर्कको गलत मानते हैं। उनका यह मत है कि विवाहसे दो स्त्री-पुरुष मिलकर एक हो जाते हैं। यह आजीवन साहचर्य है और विधिविधान-सम्मत ईश्वरीय और मानवीय अधिकारोंका परस्पर आदान-प्रदान है। विवाह कोरा 'सामाजिक करार' नहीं है; बल्कि यह एक धर्म-संस्कार, एक नैतिक दायित्व है। इसीके बलपर यह वनमानुस मनुष्य बना है और सिर उठा कर खड़ा हो पाया है।

यह समझना एक बड़ी भूल है कि जो लोग विधि-सम्मत ढंगसे विवाहित हो गये हैं उनको सब-कुछ करनेकी छूट मिल सकती है। और यदि यह मान लिया जाये कि अमुक पति-पत्नी सामान्यतः सन्तानोत्पत्तिके सम्बन्धमें नीतिके नियमोंका पालन करते हैं तो भी यह सोचना गलत होगा कि उनको सम्भोगके चाहे जैसे तरीके अपनानेका कानूनन हक है। उनपर लगाई गई यह रोक उनके और समाज दोनों ही के लिए हितकर है। उनके विवाहका उद्देश्य समाजको कायम रखना और विकसित करना ही होना चाहिए।

लेखकका मत है :

विवाहसे मनुष्यकी भोगवृत्तिपर जो कठोर अंकुश लगता है उससे बच निकलनेके लोभ-प्रसंग बार-बार सामने आते हैं। इनसे सच्चे प्रेमपर आघातका सतत भय रहता है। इस खतरेको केवल तभी टाला जा सकता है जब मनुष्य अपनी भोगलिप्साको उन मर्यादाओंके भीतर रहकर तृप्त करने के लिए जागरूक रहे जो स्वयं विवाहके लक्ष्य द्वारा निर्धारित हो जाती हैं। सेल्सके सेंट फ्रान्सिस कहते हैं: "किसी भी उम्र औषधिका सेवन खतरनाक होता है; यदि ऐसी कोई दवा खुराकसे ज्यादा ले ली जाये या वह ठीक बनी न हो तो वह बहुत नुकसान पहुँचाती है। आंशिक रूपमें कामुकताका उपचार विवाहको प्रथाका उद्देश्य है और इससे उसका शमन होता भी है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह कामुकताके रोगकी एक बहुत अच्छी औषधि है; किन्तु साथ ही यह उग्र है और इसीलिए यदि इसे विवेकपूर्वक काममें न लिया जाये तो बहुत खतर- नाक सिद्ध हो सकती है।"

लेखकने इसके बाद इस मतका खण्डन किया है कि व्यक्तिको चाहे जब विवाह करने या तोड़ने या निडर होकर विलासी जीवन बिताते हुए भी उसके दायित्वोंसे मुक्त रहनेकी स्वतन्त्रता है। वह एक पत्नीव्रतपर जोर देता है और कहता है :

यह कहना ठीक नहीं है कि मनुष्य अपनी इच्छानुसार विवाह करने या स्वार्थवश अविवाहित रहनके लिए स्वतन्त्र है। विधिपूर्वक विवाहित स्त्री और पुरुषको आपसी रजामन्दीसे विवाह-सम्बन्ध विच्छेद करनेकी स्वतन्त्रता तो और भी कम है। एक-दूसरेको चुनते समय तो वे स्वतन्त्र रहते हैं और उनमें से प्रत्येकका फर्ज है कि वह सावधानीसे सोच-विचारकर, पूरी जानकारीके साथ उसीको