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पत्र : नारायणदास बाजोरियाको

बनाई रसोई खानेमें दोष नहीं मानता। लेकिन जो लोग उसके स्पर्शमें दोष मानते हैं, आरोग्यकी दृष्टिसे उनका समर्थन किया जा सकता है। इस बारेमें धार्मिक दृष्टि कहाँतक काम दे सकती है यह कहना कठिन है; क्योंकि भिन्न-भिन्न धर्मोमें इसके बारेमें भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री अब्बास अब्दुल्लाभाई बानपारी
शाहादा, खानदेश

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९४४) की माइक्रोफिल्मसे।

३३३. पत्र : भगीरथ कानोडियाको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, श्रावण शुक्ल १०, १८ अगस्त, १९२६

भाई भागीरथजी,

आपने ५ हजार रुपये जमनालालजीके कहनेसे भेज दिये हैं। उसकी पहुंच इसके साथ रखता हूं। पैसेके लिये आपका अनुग्रह मानता हूं।

श्री भागीरथजी कानोडिया

बिरला ब्रदर्स लिमिटेड

१३७, कैनिंग स्ट्रीट, कलकत्ता[१]

मूल पत्र (एस० एन० १२२४९) की माइक्रोफिल्मसे।

३३४. पत्र : नारायणदास बाजोरियाको

आश्रम
साबरमती
बुधवार, श्रावण शुक्ल १०, [ १८ अगस्त, १९२६ ]

भाईश्री नारणदासजी,

जमनालालजीकी प्रेरणासे आपने ५ हजार रुपयेकी हुंडी भेज दी है। उसलिये आपका अनुग्रह मानता हूं । आश्रमके मकानके लिये उसका व्यय होगा।

श्री नारायणदासजी बाजोरिया
११७, हैरीसन स्ट्रीट, कलकत्ता[२]

मूल पत्र (एस० एन० १२२५१) की माइक्रोफिल्मसे ।

  1. मूल पत्रमें पता अंग्रेजीमें लिखा हुआ है।
  2. मूल पत्रमें पता अंग्रेजीमें दिया गया है।