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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए अब भाषा-दोषका भय कम हो गया है। बाकी रहा है 'नवजीवन'-प्रेमियोंका कर्त्तव्य; क्या इस वर्षमें वे उसका पालन करेंगे?

हिन्दी नवजीवन, १९-८-१९२६

३४०. पत्र : पूँजाभाई शाहको

आश्रम
बृहस्पतिवार, १९ अगस्त, १९२६

{left|भाईश्री ५ पूँजाभाई,}} 'मनाचे श्लोक' के[१] भाषान्तरको में अच्छी तरह पढ़ गया हूँ। उसमें बहुत-सी भूलें रह गई हैं, ऐसा मुझे लगा । सूक्ष्म रूपसे जाँच करना मेरी शक्तिके बाहर था और फिर मुझे मराठीका ज्ञान तो नहींके बराबर ही है। इसलिए मेरी तो यह सलाह है कि मराठी और गुजराती भाषाएँ जाननेवाले किसी विद्वान्से इस भाषान्तरका समुचित संशोधन करा लेना चाहिए।

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२५३) की माइक्रोफिल्मसे।

३४१. पत्र: रुस्तमजी वाछा गांधीको

आश्रम
साबरमती
गुरुवार, श्रावण सुदी ११, १९ अगस्त, १९२६

भाईश्री ५ रुस्तमजी वाछा गांधी,

आपके दोनों पत्र मिल गये। आपकी मांग ऐसी है कि मैं उसे टाल ही नहीं सकता। अतः थोड़ा-बहुत जो कुछ भी लिख सका हूँ वही भेजे देता हूँ।

श्री रुस्तमजी वाछा गांधी

सांझ वर्तमान कार्यालय
पेराज बिल्डिंग

फोर्ट, बम्बई

गुजराती प्रति (एस० एन० १२२५२) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. समर्थ स्वामी रामदासकी एक कृति।