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आँखें खोलनेवाले आँकड़े

जिन ३,३७९ लोगोंने अपनेको सदस्योंकी तरह दर्ज करवाया था, उनमें से अभी तक केवल १,२३१ भाइयों अर्थात् फी सैकड़े ३६ सदस्योंने अपने हिस्सेका सूत अदा किया है। असमसे पूरा चंदा देनेवाले भाई केवल एक प्रतिशत हैं और यह सबसे कम है। उसके बाद आन्ध्रका नम्बर आता है और वहाँसे फी सैकड़े केवल २४ लोगोंने सूत भेजा है। बर्मासे फी सैकड़े ८३ सदस्योंने सूत भेजा है। अतः उसका स्थान सबसे ऊपर आता है। लेकिन बर्माके केवल ६ ही सदस्य थे, इसलिए इसमें कुछ आश्चर्यकी बात नहीं है।

अतः ये आँकड़े बतलाते हैं कि लोगोंको नियमितता पसन्द नहीं है और वे देशके लिए निरन्तर काम करना नहीं चाहते। उनमें सतत त्याग करनेका भाव नहीं है। किसीको यह कल्पना न कर लेनी चाहिए कि यदि चन्देमें पैसा लिया जाये तो स्थिति कुछ विशेष अच्छी होगी। ऐसा सार्वजनिक कार्यकर्ता कौन होगा जिसे बकाया चन्देकाकटु अनुभव न हो, मुझे कांग्रेसके मन्त्रियोंकी उन दिनोंकी शिकायत याद है जब कांग्रेस कमेटीका चन्दा रुपयेके रूपमें इकट्ठा लिया जाता था। अनेक कार्यकर्त्ताओंमें सहज असावधानी भी पाई जाती है। बात यह है कि हम सार्वजनिक कार्यको केवल फुरसतके वक्तका काम, दिलबहलावका काम या लोगोंपर मेहरबानी करना समझते हैं, उसे अभीतक प्राथमिक कर्त्तव्यका दर्जा नहीं मिला है। फिर भी जिसे स्वस्थ सामाजिक और राजनीतिक जीवन बितानेकी इच्छा है, उसकी दृष्टिमें सार्वजनिक सेवा भी उतना ही बड़ा कर्त्तव्य है जितना अपनी या परिवारकी सेवा। क्या हमें अपने प्राचीन पंच महायज्ञोंका पुनः नामकरण करके उन्हें आत्मयज्ञ, परिवारयज्ञ, ग्रामयज्ञ, जातियज्ञ और मानवयज्ञ कहना उचित न होगा? सच्चा जीवन तो वही है जिसमें, इन भिन्न-भिन्न यज्ञोंमें समन्वित सम्बन्ध हो, पारस्परिक विरोध न हो। सूतका चन्दा तो सबसे हलका जातियज्ञ है। यह मानव जातिके हितका विरोधी नहीं है और ग्राम, परिवार या व्यक्तिके हितका विरोधी तो निश्चय ही नहीं है।

इसलिए मुझे इन आँकड़ोंके अध्ययनसे निराशा नहीं होती। चन्देके रूप अथवा चन्दा देनेके तरीकेको बदलनेकी जरूरत भी नहीं है। मैं खादी आन्दोलनका ज्यों-ज्यों अध्ययन करता जाता हूँ त्यों-त्यों मेरा यह विश्वास बढ़ता जाता है कि कमसे-कम प्रतिदिन आधा घंटेकी कताईका नियम रखना और उस नियमका पालन करना और चन्देका आजका स्वरूप और परिमाण कायम रखना उचित एवं आवश्यक है। यदि ये १,२३१ सदस्य भी लगातार और चुपचाप अपना सूत निरन्तर देते रहें, तो उनका यह अनुशासन उनके निजी जीवनमें क्रान्ति पैदा कर देगा और जब महापरीक्षाका समय आयेगा— और वह कभी-न-कभी अवश्य आयेगा ही— तब ये लोग राष्ट्रीय सेवाके लिए उपयुक्त पाये जायेंगे।

इन नियमित सूत कातनेवालोंमें से ही आज हमें सबसे अधिक अनवरत कार्य करनेवाले कार्यकर्त्ता मिलते हैं। मेरे द्वारा इकट्ठे और साथके साथ नियमित रूपसे प्रकाशित किये जानेवाले आँकड़े सभी पक्षपातशून्य विचारशील सज्जनोंकी आँखें खोल देंगे और उन्हें उनसे मालूम हो जायेगा कि गरीब दुखियोंकी बढ़ती हुई विपत्तिको