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पत्र : अली हसनको

मैं चाहता हूँ कि में भी इस पत्रके लेखकके समान चरखेको सभीकी मुक्तिका द्वार कह सकता। लेकिन उसे मेरी मर्यादाओंको समझना होगा। मुझे तो श्रद्धालु और अश्रद्धालु दोनोंके ही लिए लिखना पड़ता है। मुझे डर है कि लाला श्यामलाल द्वारा दिये गये प्रमाण तथा तर्क, अश्रद्धालुको नहीं जँचेंगे। वह कहेगा और अपने दृष्टिकोणसे सही कहेगा कि चरखेके धार्मिक मूल्यका अनुमोदन करनेवाले प्रमाण एक जर्जरित सभ्यतासे लिये गये हैं। वह कहेगा कि यदि कोई षि आज 'वेद' लिखे तो वह अपने आध्यात्मिक उदाहरण भापसे चलनेवाले इंजिन या इससे भी बढ़कर बिजलीकी मोटर, बेतारके तार तथा इसी प्रकारके अन्य स्रोतोंसे लेगा और भविष्यका ऋषि तो बेतारके तार तथा वायुयानोंकी भी बात नहीं सोचेगा। उसकी आध्यात्मिक शब्दावली उन छायापुरुषों और मनस्-तरंगोंका प्रतीक बनेगी जो कदाचित् क्षणके सहस्रांशको व्यक्त करनेवाले नवनिर्मित शब्दोंसे व्यक्त कालके भी अंशकालमें शून्याकाशके छोरसे उस छोरतक आने-जानेका भाव व्यक्त कर देगी। चरखेका आध्यात्मिक मूल्य उन्हींको आकर्षित कर सकता है जो मेरी तरह यह विश्वास करते हैं कि वह सभ्यता, जो मानवके मार्ग में प्रकृति द्वारा लगाये गये नियम व्यवधानोंको तोड़कर बेतहाशा लगाई जानेवाली दौड़से व्यक्त होती है, समाप्त हो रही है, वैसे ही जैसे सम्भवतः इससे भी अधिक शक्तिशाली अन्य सभ्यताएँ, जो सुख-सुविधाकी खोजमें किये गये अनेक भौतिक प्रयत्नोंपर आधारित थीं, नष्ट हो गईं। यदि लाला श्यामलाल चरखेका आध्यात्मिक सन्देश गाँवोंतक पहुँचायेंगे तो उन्हें इसके लिए मेरे वचनोंको प्रमाण बनाना आवश्यक नहीं होगा क्योंकि मैंने अपने प्रमाण गाँवोंसे ही लिये हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २६-८-१९२६

३५८. पत्र : अली हसनको

आश्रम
साबरमती
२६ अगस्त, १९२६

प्यारे दोस्त,

आपका खत मिला। मैं आपको और आपकी मेजबानीको बिलकुल नहीं भूला हूँ। लेकिन मानना पड़ेगा कि आपका ऐलान तो मुझे जरा भी पसन्द नहीं आया। आपकी अपीलकी रीढ़ साम्प्रदायिकता ही है। आप अपने हिन्दू मतदाताओंसे सिर्फ इस विनापर मत पानेकी आशा करते हैं कि आप मुसलमान हैं, इस बिनापर नहीं कि आप ज्यादा काबिल हैं और आपमें कई दूसरी खूबियां हैं। मुझे तो लगता है कि आपका यह राग बेसुरा है। अगर आप मानते हैं कि आपमें ज्यादा खूबियाँ हैं, तो चाहिए था कि आप उन्हें सामने रखते और साथमें यह उम्मीद जाहिर करते कि