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३८०. पत्र : स्वामी राघवानन्दको

आश्रम
साबरमती
३ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[१] मिला। मेरा खयाल है कि मेरे निद्रापर विजय पानेसे आपका तात्पर्य निद्राका नियमन ही है, उसका सर्वथा त्याग नहीं। जहाँतक मेरी बात है, मुझे २४ घंटे में कमसे-कम ६ घंटे सोनेके लिए चाहिए और में इतना ही सोता हूँ। यह सच है कि मैं अपनी नींदको बहुत महत्त्व नहीं देता। परन्तु यदि मैं ६ से भी कम सोऊँ तो शरीर और मस्तिष्क दोनोंको ही कष्ट होता है। कामवासनाका पूर्ण रूपसे निराकरण करना मैं सम्भव मानता हूँ और यह भी मानता हूँ कि ऐसा करना लाभप्रद है। निद्राका पूर्ण त्याग मेरे विचारसे, न तो सम्भव है और न वांछित ही। निद्रापर नियन्त्रण स्वल्प भोजन तथा बहुत ज्यादा थका डालनेवाले श्रमसे बचनेपर निर्भर करता है।

हृदयसे आपका,

स्वामी राघवानन्द

वेदान्त समिति
२४ वेस्ट, ७१ स्ट्रीट

न्यूयॉर्क (अमेरिका)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०८०७) की फोटो-नकलसे।

३१-२४
  1. स्वामी राघवानन्दने गांधीजीको अपने २४ जुलाई, १९२६ के पत्रमें (एस० एन० १०७८२) लिखा था कि मैं आपके आत्मसंयम और स्वादेन्द्रिय तथा कामवासनापर विजय पाने सम्बन्धी विचारोंसे परिचित हूँ। परन्तु मैं निद्रा-विजयके बारेमें आपके विचार जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैंने सुन रखा है कि आप स्वल्प निद्रा सेवन करते हैं, जब चाहे तब उठ बैठते हैं और उठते ही अर्चना अथवा लेखनमें व्यस्त हो जाते हैं।