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३८७. पत्र : वी० ए० सुन्दरम् को

७ सितम्बर, १९२६

प्रिय सुन्दरम्,

तुम्हारे तोहफे[१] प्रति सप्ताह बिना नागा मिलते रहते हैं। अनेक धन्यवाद।

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ३१७६) की फोटो-नकलसे।

३८८. पत्र : जुगलकिशोर बिड़लाको

आश्रम,
साबरमती
मंगलवार श्रावण अमावास्या, [७ सितम्बर, १९२६][२]

भाई श्री जुगलकिशोरजी,

आपका पत्र मिला है। बाईबल 'के बारेमें मैंने जो 'यंग इंडिया में लिखा[३] है वह आपने पढ़ लिया होगा। इससे संतोष होना चाहिए। 'विश्वमित्र में जो लिखा है वह भी मैंने दृष्टि-गोचर कर लिया है। मैं केवल इतना ही और कहना चाहता हूं कि यदि बच्चोंको 'बाईबल' सीखना वास्तविक है तो मेरे ही मारफत सीखे वह अच्छा ही है। मेरे मार्फत सीखनेसे बच्चोंको एक ही चीझ मिल सकती है। वह सर्व धर्मोका निचोड़ याने रामनाम। मेरे लिखनेका या करनेका दूसरे लोक दुरूपयोग करें इससे न मुझको, ना मेरे सिद्धांतोंको कुछ हानि पहुंच सकती है। सत्यका दुरूपयोग कैसे हो सकता है? उसका दुरुपयोग ही सदुपयोग सा बन जाता है। इस कारण उपनिषदादिमें सत्यको सर्वोपरि स्थान दिया है। उसीको परमेश्वर कहा है। यदि आपको अब भी शांति नहीं हुई है तो आप मुझे और लिखें।

मूल पत्र (एस० एन० १२२६९) की फोटो-नकलसे ।

  1. देखिए “पत्र : वी० ए० सुन्दरम्को”, ५-७१९२६ ।
  2. गांधीजीका यह लेख यंग इंडियाके २-९-१९२६ के अंकमें छपा था। देखिए "बाइबिल पढ़नेका गुनाह", २-९-१९२६ ।
  3. गांधीजीका यह लेख यंग इंडियाके २-९-१९२६ के अंकमें छपा था। देखिए "बाइबिल पढ़नेका गुनाह", २-९-१९२६ ।