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४०२. पत्र : छोटालाल तेजपालको

भाद्रपद सुदी १, १९८२, ८ सितम्बर, १९२६

भाईश्री ५ छोटालाल तेजपाल,

शवको गाड़ीमें रखकर ले जाया जाये या कंधोंपर इसका अस्पृश्यताके साथ कोई सम्बन्ध है, ऐसा मुझे नहीं लगता। मेरे शवको गाड़ीमें ही ले जाया जाये ऐसी वसीयत मैं नहीं करना चाहता, क्योंकि इसमें मुझे कुछ मोह दीख पड़ता है। यदि आश्रममें ही अग्निसंस्कार किया जाये तो थोड़ेसे बाँसोंपर या हाथसे ही उठाकर ले जाया जाये, मैं इसे अधिक उपयुक्त मानता हूँ। शवको गाड़ीमें ही ले जाना धर्म है, मैं इसे नहीं मानता। लेकिन प्रसंगवश कुछ अवसरोंपर ऐसा करनेकी आवश्यकता और उपयुक्तताको मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९४८) की माइक्रोफिल्मसे।

४०३. विद्यार्थियोंकी दुर्दशा

एक बहन, जिन्हें अपनी जिम्मेदारीका पूरा खयाल है, लिखती हैं :

जबतक हमारे बच्चे वीर्यकी रक्षा करना नहीं सीखते, तबतक हिन्दुस्तानको जैसे चाहिए वैसे व्यक्ति कभी नहीं मिलेंगे। १७ वर्षीतक हिन्दुस्तान में मैंने लड़कोंके स्कूलोंका काम सँभाला है। हिन्दू, मुसलमान और ईसाई लड़के जिस बड़ी संख्या में स्कूलकी पढ़ाई, जोश, ताकत और उम्मीदोंसे भरकर शुरू करते हैं लेकिन उसे खत्म करते-करते वे शरीरसे जिस तरह निकम्मे हो जाते हैं, उसे देखकर मुझे रुलाई आती है। मैंने सैकड़ों लड़कोंके बारेमें जाँच करके यह पाया है कि इसका प्रत्यक्ष कारण वीर्यनाश, अप्राकृतिक कर्म या बाल-विवाह ही है। आज मेरे पास ऐसे ४२ लड़कोंके नाम हैं जो अप्राकृतिक कर्मके दोषो हैं, जिनमें से १३ सालसे अधिक आयुका एक भी नहीं है। शिक्षक और माता- पिता कहेंगे कि ऐसी हालत हगिज नहीं है; फिर भी अगर सही ढंगसे जाँच की जाये तो तुरन्त ही इस व्याधिका पता लग जायेगा और करीब-करीब हर लड़का अपना गुनाह कबूल कर लेगा। इनमें से ज्यादातर लड़कोंका कहना यह है कि उन्हें सयाने आदमियों, कुछको अपने सम्बन्धियोंके संसर्गसे यह कुटेव पड़ी है।