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१०. पत्र : हसन अलीको

आश्रम
१६ जून, १९२६

भाईश्री ५ हसनअली,

. . .[१] मैं जो फल लेता था वे मुख्यतः केले, खजूर, टमाटर, मूंगफली और नीबू थे। इस आहारका आध्यात्मिक परिणाम मैंने यह देखा है कि मैं उस समय अपने जीवनमें सभी प्रकारके विकारोंसे ज्यादासे-ज्यादा रहित था। जब विलायतमें मेरी पसलियोंमें तेज दर्द[२] उठा तब मुझे इस आहारमें परिवर्तन करना पड़ा। यह दर्द मेरी भूलसे उठा था। मैं इसके बाद हिन्दुस्तान आया और अपनी ही भूलके कारण पेचिश से पीड़ित हुआ।[३] उसके बाद तो जो प्रयत्न सम्भव थे सभी किये; किन्तु मेरा बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। इसलिए मैंने बकरीका दूध पीना शुरू किया और वह आजतक चलता है। ऐसा करनेका दुःख तो मुझे हमेशा रहेगा; लेकिन मैंने जो काम हाथमें लिया था उसे करनेके लिए मैं जीना चाहता था। यह मोह मुझे आज भी है। इसीके कारण मैंने फिर दूध पीना शुरू किया था और वह दूध पीना आज भी जारी है। डाक्टर लोग अपनी शोधमें केवल शरीरका ही विचार करते हैं। इससे उनके कुछ, बल्कि बहुतसे प्रयोग आत्माके लिए घातक सिद्ध होते हैं।...[४]

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९१७) की माइक्रोफिल्मसे।

११. टिप्पणियाँ

देशबन्धुकी बरसी

आज[५] देशबन्धु दासकी मृत्युको एक वर्ष पूरा हो गया; आज उनकी प्रथम बरसी है। उनको मृत्यु कर्मरत, पूर्ण गौरवयुक्त अवस्थामें हुई, क्योंकि उनका हृदय आस्थासे भरपूर था। उन्हें अपने और अपने देशपर भरोसा था, क्योंकि उन्हें ईश्वर-पर भरोसा था। अन्तिम दिनतक भी उन्होंने अपने लाभका विचार नहीं किया।

  1. १. साधन-सूत्र में यहाँ कुछ छूटा हुआ है।
  2. २. १९१४ में, देखिए खण्ड १२।
  3. ३. १९१८ में; देखिए खण्ड १५।
  4. ४. साधन-सूत्रमें पहाँ कुछ छूटा हुआ है।
  5. ५. १६ जून, १९२६।