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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको यूरोपीय तथा भारतीय दोनों समाजोंका अच्छा ज्ञान है। आप यह जरूर बता सकते हैं कि सब बातोंको देखते हुए भारतीय स्त्रियाँ अधिक पतिपरायण होती हैं या यूरोपीय स्त्रियाँ; गरीब तबकेके भारतीय अपनी स्त्रियोंसे अधिक दयालुताका बरताव करते हैं या यूरोपीय, भारतीय समाज में क्लेशकारी विवाह कम होते हैं या यूरोपीय समाजमें और भारतीय समाजमें स्त्री-पुरुषके सम्बन्धकी शुद्धता अधिक होती है या यूरोपीय समाजमें। यदि इन पहलुओंसे यूरोपीय विवाहोंकी अपेक्षा भारतीयोंके विवाह अधिक सफल हैं तो लड़कियोंके बाल-विवाहको जो भारतीय विवाहको पद्धतिकी एक विशेषता है, बुरा नहीं ठहराना चाहिए।

मैं यह नहीं मान सकता कि हिन्दू स्मृतिकार लड़कियोंका विवाह बालपनमें करनेका आदेश देते समय समाजके स्त्री-पुरुष दोनोंके सार्वजनिक कल्याणके सिवा और किसी विचारसे प्रेरित हुए थे । मैं समझता हूँ कि लड़कियोंका बाल्यावस्था में विवाह करना हिन्दू समाजकी एक ऐसी विशेषता है जिससे अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियोंमें भी उसको शुद्ध बनाये रखने और छिन्न-भिन्न होनेसे बचाने में सहायता मिली है। शायद आप इस सबको ठीक न मानें, लेकिन क्या हम यह आशा नहीं रख सकते कि आप अपने इस विचारको त्याग देंगे कि वे सब हिन्दू स्मृतिकार, जिन्होंने कन्याओंके बाल-विवाहपर जोर दिया है, आत्मसंयम-शून्य और पापमें डूबे हुए थे।

आपने मद्रासकी जिस घटनाका हवाला दिया है, वह बड़ी विचित्र है। न्याय-मण्डलकी मान्यता यह थी कि उस लड़कीने आत्मघात किया है, लेकिन लड़कोने यह बयान दिया कि उसके पतिने उसके कपड़ोंमें आग लगा दी थी। इन परस्पर विरोधी स्थितियोंमें, जिन बातोंको आप निविवाद मानते हैं, उन्हें सचमुच निविवाद मानना बहुत मुश्किल है। तेरह वर्षसे कम उम्रकी लाखों लड़कियोंके विवाह हो चुके हैं, लेकिन किसी लड़कीने पतिको निर्दयतापूर्ण काम चेष्टाके कारण आत्महत्या की हो, ऐसी एक भी घटना पहले सुननेमें नहीं आई। संभवतः मद्रासकी इस घटनामें कुछ खास बातें हों और उस लड़कीकी मृत्युका मुख्य कारण बाल-विवाह न हो।

कविवर ठाकुरने ठीक कहा है— "कोई भी मनुष्य उन तथ्योंकी, जो छुपे-छुपे उसकी आत्माको चोट पहुँचाते हैं, कटुता कम करनेके निमित्त एक अनुकूल तत्त्वज्ञान सुगमतासे तैयार कर लेता है।" 'यंग इंडिया' के ये पाठक तो एक कदम और आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने एक अनुकूल तत्त्वज्ञान ही तैयार नहीं किया है, बल्कि तथ्योंकी उपेक्षा की है और अपुष्ट बातोंकी नींवपर अपनी दलील खड़ी की है।

अनुदारताके आरोपके बारेमें मैं कुछ लिखना नहीं चाहता, यदि किसी दूसरे कारणसे नहीं तो महज इसीलिए सही कि मैंने दोषारोपण स्मृतिकारोंपर नहीं किया