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४१४. पत्र : बेचर भाणजीको

आश्रम
साबरमती
गुरुवार, भाद्रपद सुदी २ [९ सितम्बर, १९२६]

भाईश्री ५ बेचर भाणजी,

आपका पत्र मिला। आपने आठ वस्तुओंके प्रति आस्था प्रकट की है। मुझे उनमें कुछ भी दोष दिखाई नहीं देता। यदि इनके प्रति आपकी आस्था आपके हृदय में घर कर गई हो और उसमें साकार हो रही हो तो आप सभी प्रकारके मानसिक दोषों और लालसाओंसे अवश्य मुक्त हो जायेंगे। जिस बातके प्रति धारणा पक्की हो और उसके प्रति श्रद्धा भी हो तो उसके लिए जी तोड़ और अथक प्रयत्न करना चाहिए— तपश्चर्या करनी चाहिए— और शरीरके संयम द्वारा उसे हृदयमें उतारते रहना चाहिए। यदि ऐसा किया जायेगा तो सफलता मिलकर रहेगी।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मास्टर बेचर भाणजी

बरास्ता कुण्डला
अम्बा

काठियावाड़

गुजराती पत्र (जी० एन० ५५७३) की फोटो-नकल तथा एस० एन० १२२७५ से।

४१५. पत्र : भीखाईजी पालमकोटको

आश्रम
साबरमती
गुरुवार, भाद्रपद सुदी २, ९ सितम्बर, १९२६

प्रिय बहन,

आप तो मुझसे उम्रमें बड़ी हैं। पर आपके अक्षर और आपकी आकाक्षाएँ जवानोंको शोभा देनेवाली हैं। इसलिए अपना जो वर्णन आपने किया है उसे मैं समझ सकता हूँ। आपने अपने पुरखोंके बारेमें जो कुछ लिखा है वह भी शानदार है और उनकी, आपकी तथा भारतकी शोभा बढ़ानेवाला है। यदि आप भारतीय संगीतकी सेवा कर सकतीं तो मुझे जरूर ज्यादा खुशी होती। लेकिन अगर पश्चिमकी कला आत्माका विकास करनेकी क्षमता रखती हो और कोई उसे सीखे तो भी