४६५. पत्र: हरदयाल नागको
आश्रम
साबरमती
२१ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। मुझे कहना पड़ेगा कि आपका खद्दर कार्यक्रम मुझे पसन्द नहीं आया। आप चाँदपुरमें बाहरसे कता सूत मँगवाकर अपने यहाँ खादी बुनवाते हैं। इससे आप खादीके कार्यको आगे नहीं बढ़ाते। आप असलमें तो अपने छात्रों में कताईका प्रचार करना चाहते हैं। वे बुनकर भी शौकसे बनें, लेकिन उन्हें वही बुनना चाहिए जो वे स्वयं कातें। यदि आप अपने छात्रोंको केवल कातनेके काममें लगायें तो आपके पास जितनी रुई पड़ी है, वह सबकी सब वहीं खप जायेगी। इसके अलावा, चाँदपुरमें स्वेच्छया कातनेवाले कुछ लोग होने ही चाहिए। बंगालके अनेक भागोंमें और हिन्दुस्तानके दूसरे हिस्सोंमें भी, हालाँकि वहाँ कपास पैदा नहीं होती, लोग कताई करते हैं।
हृदयसे आपका,
चाँदपुर
बंगाल
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७०४) की माइक्रोफिल्मसे।
४६६. पत्र: डा॰ सत्यपालको
आश्रम
साबरमती
२१ सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। काश मैं आपको अखबार निकालनेके इस उपक्रमसे रोक पाता। इससे बिलकुल कोई भलाई नहीं होगी। हमारे यहाँ पहले ही बहुत ज्यादा अखबार हैं। मुझे यकीन है कि अखबारोंकी इस फौजमें, जो अब सिरदर्द बन गई है, एक और बढ़ाकर आप राष्ट्रके कार्यको आगे नहीं बढ़ायेंगे। यदि आपके पास ईमानदार कार्यकर्ता हैं तो आप उनको ऐसी बातें लिखनेमें क्यों जुटा देना चाहते हैं जिन्हें आम जनता पहलेसे जानती है। वे जिस प्रकारका रचनात्मक कार्य कर सकते हैं उनसे वही