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पत्र : वीरेन्द्रनाथ सेनगुप्तको

रखनेकी आवश्यकता नहीं।[१] उनकी तबीयत भी कुछ ढीली तो है ही। इसलिए बिलकुल चंगा हो जाना जरूरी है। क्या लालजीके घाव अभी पूरे नहीं भरे? मथुरादास पंचगनीमें रम गया है। गुजराती प्रति (एस० एन० १९६२२) की माइक्रोफिल्मसे।

२१. सन्देश : नेलौर आदि-आन्ध्र सम्मेलनको[२]

[ १९ जून, १९२६ या उससे पूर्व ]

सम्मेलनके लिए मेरा सन्देश यह है । ईश्वर करे सम्मेलन पूर्णतया सफल हो। इस सम्मेलनको पल्लिपाड सत्याग्रह आश्रमके अहातेमें आयोजित करना, राष्ट्रके काममें निःस्वार्थ भावसे अपना जीवन खपा देनेवाले देशभक्त स्व० डी० हनुमन्तरावकी स्मृतिके प्रति सम्मान प्रकट करना है।

आशा है कि उस स्थलपर जो अनेक सम्मेलन होने जा रहे हैं उनमें हाथ- कताई और खद्दरको आवश्यकतापर जोर दिया जायेगा। मुझे यह आशा भी है कि इस सम्मेलनके प्रयाससे नेलौर जिलेके माथेपरसे अस्पृश्यताका वह कलंक भी मिटा दिया जायेगा जो अपनी पिछली यात्राके अवसरपर मुझे वहाँ दिखाई दिया था।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २१-६-१९२६

२२. पत्र: वीरेन्द्रनाथ सेनगुप्त को

आश्रम
साबरमती
१९ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरे विचारसे तो जबतक मनुष्यके मनमें काम-वासना मौजूद है तबतक दिव्य ज्ञान प्राप्त करना असम्भव है। यदि कोई व्यक्ति अपने निश्चयको सर्वथा उचित माने तो वह पत्नी या पतिके आगे झुकनेके लिए बाध्य नहीं है। मेरे

  1. १. अखिल भारतीए चरखा संघको बैठकमें भाग लेनेके लिए।
  2. २.यह पत्र पल्लिपाड सत्याग्रह आश्रमके मन्त्रीको भेजा गया था। सम्मेलन हराला देवेन्द्रड, एम० एल० सी० की अध्यक्षता में हुआ था और उसमें आन्ध्र पत्रिकाके डी० के० नागेश्वरराव पन्तुलुने उक्त सन्देश पढ़कर सुनाया था।