पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४०. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय सतीशबाबू,

दो कामों मैं आपकी मदद चाहता हूँ; इनका सम्बन्ध आपके खादीकार्यसे नहीं है। आप जानते ही हैं कि केशूकी मशीनी काममें स्वाभाविक रुचि है। वह इसमें और तरक्की करना चाहता है; उसका खयाल है कि यह तभी सम्भव हो सकता है, जब उसे किसी मेकेनिकल इंजीनियरिंग संस्था या कारखाने में काम करनेका अवसर मिले। मैं उसकी यह अभिलाषा पूरी करना चाहता हूँ। परन्तु मुझे यह नहीं मालूम कि उसके लिए कहाँ व्यवस्था करनी चाहिए। मैंने आन्ध्र राष्ट्रीय संस्थानकी पाठ्यक्रम सम्बन्धी पुस्तिकाके लिए मसूलीपट्टम पत्र[१] लिखा था। वह आ भी गई है। परन्तु मुझे मालूम है कि इस विषयमें आपकी राय सबसे अच्छी रहेगी। यह हुई एक बात।

दूसरी बात साबुनसे सम्बन्धित है। चूंकि साबरमती आश्रमकी बस्ती बढ़ती जा रही है, साबुनपर होनेवाला खर्च बढ़ रहा है। बदनमें लगानेवाले साबुनकी एक टिकिया ४ से ६ आने तकमें मिलती है। कपड़े धोनेके साबुनकी बट्टी दो आनेकी मिलती है। अगर कोई व्यक्ति शरीर या कपड़ा साफ करनेके लिए पानीके अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ चाहे तो क्या इसके लिए कोई और सस्ता साधन उपलब्ध नहीं हो सकता? अगर आप साबुन बनानेकी सरल विधि लिख भेजें और यह भी कि उसमें कौन-कौनसी चीजें दरकार है, तो यह विचार करनेके पश्चात् कि इस प्रकार तैयार किया गया साबुन अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है या नहीं, मैं निश्चय ही उसे आश्रम बनवाने लगूंगा। आप काफी बड़े परिमाणमें साबुन बना चुके हैं। इसलिए शायद आप मुझे बता सकेंगे कि क्या करना चाहिए। मुझे डॉ० रायके ढंगका नुस्खा चाहिए। दंतमंजनके सम्बन्धमें उन्होंने जो कुछ कहा था सो आपको याद होगा। उनके शब्द थे, "बंगाल केमिकल वर्क्समें बनाया जानेवाला मंजन मूर्खोके लिए है; मुझ जैसे बुद्धिमान व्यक्तियोंके लिए तो खड़िया मिट्टी या पिसा हुआ लकड़ीका कोयला ही सबसे अच्छा दंतमंजन है। क्या बुद्धिमान व्यक्तियोंके लिए कोई ऐसा ही सादा-सा नुस्खा साबुनके बारेमें भी है?

मुझे मालूम हुआ है कि हेमप्रभा देवीने 'आश्रम भजनावली' की १२ प्रतियाँ मँगवाई हैं। अभीतक प्राप्त संस्करण लगभग समाप्त हो गया है और उसमें अनेक अशुद्धियाँ भी हैं। नवजीवन छापाखानेका यह सबसे अधिक लोकप्रिय प्रकाशन है। अब इस पुस्तकको एक समिति बहुत सावधानीके साथ संशोधित कर रही है। आशा

  1. १. देखिए “पत्र: पट्टाभि सीतारमैयाको”, २२-६-१९२६ ।