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४२. पत्र : के० टी० मैथ्यूको

आश्रम
साबरमती
२२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरा तो यह खयाल है कि यदि केवल आप भी त्यागपत्र देकर पुनः चुनाव लड़ें तो उससे जनताको कुछ-न-कुछ शिक्षण अवश्य मिलेगा। आपका सत्याग्रह करना तो निश्चय ही अप्रस्तुत होगा। मोटे तौरपर तो वकालतके पेशेके बारेमें यही कहा जा सकता है कि वह कोई आत्मोन्नति करनेवाला पेशा नहीं है। परन्तु उस पेशेमें अपने सिद्धान्तोंकी रक्षा करते हुए किसीके लिए केवल जीविकोपार्जन करना कठिन नहीं है। जिस प्रकारकी सहायताकी आपको आवश्यकता है, उस प्रकारको सहायता किसी सार्वजनिक संस्थासे प्राप्त हो सकना कठिन होगा। साथ ही, आपने कानूनकी जो योग्यता प्राप्त कर ली है, जीविकाके लिए उसका उपयोग न कर पाना दुखकी बात होगी। मेरा पक्का विश्वास है कि आप-जैसे व्यक्तियोंके लिए कोचीनमें ही सार्वजनिक सेवाके क्षेत्रमें काफी गुंजाइश है।

हृदयसे आपका,

श्री के० टी० मैथ्यू

सदस्य, विधान परिषद्
कुन्नमकुलम

कोचीन राज्य

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२२६) की माइक्रोफिल्मसे।