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टिप्पणियाँ

एक विडम्बना

संघके[१] मन्त्री डॉक्टर मलानने जिस प्रणालीको 'स्वैच्छिक वापसी' कहा है, वह स्वैच्छिक तो कदापि नहीं है। उसके लिए लोगोंको उकसाया जाता है, सहायता दी जाती है अथवा प्रलोभन दिया जाता है। यदि यह प्रक्रिया रोकी नहीं गई तो सम्भव है कुछ समयमें ही यह वापसी अनिवार्य हो जाये। कहा जाता है कि जो लोग वापस भेजे गये हैं उनमें से ज्यादातर लोगोंका जन्म उस उपनिवेशमें ही हुआ था। उपनिवेशमें पैदा हुआ कोई भी भारतीय अपनी इच्छासे भारत नहीं लौटेगा, क्योंकि उसके लिए तो भारत एक भौगोलिक शब्द मात्र है। फिर जब वापस जानेवाले भारतीयोंकी भरतीके लिए गुमाश्ते नियुक्त किये जाते हैं, और शायद उन्हें उनके कार्यके परिणामके अनुसार वेतन दिया जाता है एवं जब इन भरती किये हुए लोगोंको वापस जानेतक बाड़ोंमें बन्द रखा जाता है, तब यह वापसी स्वैच्छिक नहीं रह जाती। मुझे ऐसा लगता है कि यदि इन लोगों को बाड़ोंमें बन्द करनेका मामला जाँचके लिए अदालतमें ले जाया जाये, तो सम्भवतः वह गैरकानूनी करार दे दिया जायेगा; क्योंकि बिना पहरेके लोगोंको बन्द रखनेसे उद्देश्य नहीं सधेगा और स्वतन्त्र और निर्दोष लोगोंको पहरेमें रखना गैरकानूनी हिरासतके बराबर होगा। मैं जानता हूँ कि सन् १९१४ में वहाँ कोई ऐसा कानून नहीं था जिसके अनुसार ऐसे लोगोंको बाड़ोंमें बन्द रखा जा सके और उनपर पहरा बैठाया जा सके। यदि उपनिवेशीय भारतीयोंकी वापसी स्वैच्छिक रखनी है तो उसे भरती करनेवाले गुमाश्तोंकी कष्टप्रद निगरानीसे मुक्त रखना चाहिए और उन लोगोंको बाड़ोंमें या शिविरोंमें बन्द नहीं रखना चाहिए।

सच्चा गुरु

मैंने जिस टिप्पणीमें[२] 'गुरु' की व्याख्या की थी उसके समर्थनमें एक पत्रलेखकने यह दिलचस्प जानकारी भेजी है:

गुरुकी आपकी की हुई परिभाषाको देखकर मुझे सन्त कवि रामदासकी ये सुन्दर पंक्तियाँ याद हो आई। वे कहते हैं:

विवेका ऐसा गुरू, चित्ता ऐसा शिष्य चतुरू।
जीवा ऐसा मित्र उदारु, भुवनत्रयी मिळेना॥

'सत्य और असत्य, न्याय और अन्याय अथवा सद् और असद् में अन्तर करने की शक्ति— विवेकसे अच्छा कोई गुरु नहीं हो सकता। चित्त अथवा मनसे अच्छा दूसरा शिष्य नहीं है और जीव या आत्मा से अच्छा दूसरा मित्र नहीं है।' असलमें रामदास कहते हैं कि 'मनुष्यको गुरुकी खोजमें बाहर जानेकी आवश्यकता नहीं है। ईश्वरमें पूर्ण श्रद्धा रखने से जो विवेक-शक्ति प्राप्त हो उसके

  1. १. दक्षिण आफ्रिकी।
  2. २. देखिए "टिप्पणियाँ", १७-६-१९२६ का उपशीर्षक "गुरुकी तलाश"।