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७२. शंकाका भूत

"एक मुसाफिर" ने निम्न गुमनाम पत्र लिखा है।[१]

ऐसे पत्रपर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन कितने ही राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं के बारेमें इस तरहके सन्देह किये जाते होंगे। इसमें जो मुद्दे उठाये गये हैं वे ध्यान देने योग्य हैं। पत्र आते ही मैंने पूछताछ की और मुझे मालूम हुआ कि 'एक मुसाफिर" जो-कुछ लिखते हैं, वास्तविकता उससे बिलकुल भिन्न है। जिस सेवकके बारेमें यह शिकायत की गई है उसका काम ऐसा है कि यदि वह, जैसा कि ऊपर बताया गया है वैसी टिकटकी चोरी करे तो उसका काम ही नहीं चल सकता। इसके अतिरिक्त उसपर अधिकारियोंकी आँख भी रहती है। यदि वह एक बार भी बिना टिकट यात्रा करता हुआ पकड़ा जाये तो उसके सेवाकार्यमें अवरोध उत्पन्न हो जाये। यह सेवक सामान्यतः तीसरे वर्गमें ही यात्रा करता है; लेकिन मोरबीसे एक अन्य मित्रने उसे दूसरे वर्गका टिकट खरीद कर दिया। इसलिए वह दूसरे वर्गमें बैठा। उसने मुलीसे थोड़ी दूरतक तीसरे वर्गमे यात्रा की उसका कारण यह था कि उसे तीसरे वर्गमें बैठे किसी मित्रसे बातचीत करनी थी। उसके पास दूसरे वर्ग के टिकटका नम्बर अभी मौजूद है। सामान्य रूपसे कोई इस तरह नम्बर नहीं रखता, लेकिन जैसा मैंने ऊपर लिखा अधिकारियोंकी उसपर कड़ी नजर रहती है और उसकी टिकटकी जांच बहुतसे स्थानोंपर की जाती है, इससे वह स्वयं भी अपने टिकटका नम्बर लिख लेता है। "एक मुसाफिर" ने इस सेवकका टिकट देखने अथवा उससे पूछनेका कष्ट किया हो, ऐसा नहीं लगता।

यह तो हुआ तथ्यों के बारेमें।

इस पत्रमें शिकायत की गई है; इससे सेवकको जितना गर्वका अनुभव करना चाहिए उतना ही उसे सावधान भी रहना चाहिए। गर्व इसलिए कि खादी पहनने वाले सेवकसे लोग पूर्ण निर्दोष रहनेकी आशा रखते हैं। सावधानी इसलिए कि खादी पहननेवाले सेवकको अनुचित काम करनेसे बचना चाहिए। तथापि इतना स्वीकार करना चाहिए कि खादीका दुरुपयोग अनेक स्वार्थी तथाकथित 'सेवकों' ने किया है। खादी पहनकर और लोगोंको यह विश्वास दिलाकर कि वे त्यागी हैं, ऐसे लोग कौमको धोखा देते हैं और उसके साथ न्याय भी नहीं करते। ऐसे खादी पहननेवाले खादीको बदनाम करते हैं।

यह अनुमान तो बिलकुल ठीक है कि जो व्यक्ति टिकटके लिए रेलवे कम्पनीको धोखा देगा, वह अन्तमें अपने स्वार्थ के लिए देशको भी लूटेगा। ऐसा होनेपर भी अनेक लोगोंको ऐसा लगता है कि रेलवे कम्पनी आदिको घोखा देनेमें कोई दोष नहीं है

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया था कि सौराष्ट्रके एक प्रमुख कार्यकर्ता उचित भाड़ा दिये बिना रेलमें सफर कर रहे थे।